Tuesday, July 21, 2009

देखता हूं आईना तो महसूस होता है मुझे

जिन्दगी के मायने हैं अब समझ आने लगे
 इक इक कर जब छोड़ के सब हमे जाने लगे

 देखता हूं आईना तो महसूस होता है मुझे
सीने मे द्फन गम हैं चेहरे पे नजर आने लगे

 हमने जिन हाथों मे अक्सर फूल थमाये कभी
 वो हाथ अब सर पे मेरे पत्थर हैं बरसाने लगे

 देखा जब सीने मे नये जख्मो की जगह नहीं
दोस्त कान्टो से पुराने जख्म सहलाने लगे

किस किस्म के बीज थे जाने कैसी जमीन थी
 पोधो पे फूलो की जगह कान्टे नजर आने लगे

 ना कहें बदकिस्मती तो क्या कहे तू ही बता
 जब दोस्त सारे दुश्मनी कि रस्म निभाने लगें

 दूरी की बात और थी नजदीक जब गये कभी
ऊन्चे कद वाले सभी बौने नजर आने लगे

यूँ मानने को मान लेता हू तेरी हर बात मैं
 वैसे  तो हर बात तेरी मुझ को बेमायने लगे

अब हमारे बचने की उम्मीद बचती है कहां
हमको बचाने वाले है खुद को बचाने मे लगे

खेत मे तू ही बता कोई फसल बचती हैं कभी
 खेत की जब बाड़ खुद ही खेत को खाने लगे

4 comments:

अनिल कान्त said...

जिंदगी की दास्तान सुना दी आपने

श्यामल सुमन said...

जिन्दगी के मायने हैं अब समझ आने लगे
इक इक कर जब छोड़ के सब हमे जाने लगे

बहुत खूब। बेहतर भाव रचना के। मेरे मित्र रघुनाथ प्रसाद की पंक्तियाँ हैं-

जिस दिन से हो गयी परायी रिश्तों की पहचान
रोते रोते विदा हो गयी होठों से मुस्कान

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Anonymous said...

Really It's a story of life. Nothing else. Good...

Krishan lal "krishan" said...

Anil Kant ji, Shyamal Suman ji aur Nidhi Trivedi ji aap sab kaa aabhaari hun k aapne rachna ko pasand kiya aur us par pritikriya vyakat ki. Dhanyavaad.