जाने क्यों फिर नजर तुझ को आते नहीं
प्यार करते है जान से भी ज्यादा तुम्हें
बात इतनी है बस हम बताते नहीं
याद करते है हम तो तुम्हें रात दिन
है खता ये कि तुम को जताते नहीं
बात किससे करें कोई अपना तो हो
गैर लोगो से कुछ बतियाते नहीं
सामने किसके आयें कोई चाह्ता तो हो
बेवजह वक्त किसी पे लुटाते नहीं
सब तमाशाई बन शोर करते बहुत
खुद करके मदद क्यों बचाते नहीं
झूठी हमदर्दी है झूठा सा प्यार है
कष्ट थोड़ा भी लोग खुद उठाते नहीं
कुछ गवाना पड़े ना और सब कुछ मिले
ऐसे नाता किसी से निभाते नहीं
डूबना ही जिसे तकदीर लगने लगे
भीड़ तमाशाईयों की वो लगाते नहीं
1 comment:
अंतिम की पंक्तियाँतो कमाल की है ......जिसमे भीड लगाते तो नही .....बहुत ही खुब...
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