खुशबू नहीं रंगत नहीं खिले फूल फिर किस काम के
चाह्त नहीं वफा नहीं रिश्तों मे बाकी क्या बचा
अब तो रिश्ते रह गये हैं सिर्फ नाम ही नाम के
हर शख्स ही बिकाऊ है इस दुनिया के बाजार मे
फर्क बस इतना है कौन बिकता है किस दाम पे
मह्फिल मे आ गये हैं तो प्यासा ना रख साकी हमें
दो घूंट मुंह मे डाल दे, ना पिला सके गर जाम से
जाने अभी ये दौर और क्या क्या दिखलाये हमे
क्या अभी से बैठना अपना कलेजा थाम के
इन नाम वाले लोगो को देखा है जब भी करीब से
अच्छे नजर आने लगे वो लोग जो बदनाम थे
किन उजालों की तमन्ना कर रहा है इन से तूँ
ये सुबह के सूरज नहीं ये हैं ढलते सूरज शाम के
मालूम है कि"ना" ही "ना" हर लफ्ज मे लिखेगा तूँ
बिन लिफाफा खोले वाकिफ हैं तेरे पैगाम से
कौड़ियों के मोल भी बिकता तो कोई गम ना था
गम ये है सब बिक गया बिन मोल के बिन दाम के
5 comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .
waah
umdaa she'r
sach k she'r
_____________badhaai !
Eklavya ji
rachna ko pasand karne ke liye shukriya
khatri ji
kyaa baat kahi hai aapne hazoor. Bahut Bahut dhanyavaad
bhut jabardast rachnayen hein sir
agar waqt ho to please chek
www.rajeevkumarpandey.wordpress.com
thnks a lot
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