मान लूँ कैसे अज़र है या अमर है आत्मा
जब देखता हूँ हर कहीं हर रोज़ मरती आत्मा
मार भी ना पाये तो इसको सुलाये रख सदा
जागते ही ये दुखी तुझ को करेगी आत्मा
सीख सकता है तो कुछ इन बड़े लोगो से सीख
ताउम्र कौमा मे पड़ी रहती है जिन की आत्मा
ये कहीं का भी ना छोड़ेगी तुझे संसार मे
जितनी जल्दी हो सके तूँ आत्मा को मार दे
पांव मे बैठा है क्या पहने हुये तू बेड़ीया
काट बेड़ी आत्मा की कदमों को रफतार दे
देखना पछतायेगा और रोयेगा तू ज़ार ज़ार
उतरा आत्मा का जिस भी दिन चढा बुखार ये
इसकी तो आदत है देती पीछे से आवाज है
आगे बढना है तो हर आवाज इसकी नकार दे
फिर ना कहना मैने पहले तुमको चेताया नहीं
इससे पहले ये तुम्हें मारे तूं इस को मार दे
जब देखता हूँ हर कहीं हर रोज़ मरती आत्मा
मार भी ना पाये तो इसको सुलाये रख सदा
जागते ही ये दुखी तुझ को करेगी आत्मा
सीख सकता है तो कुछ इन बड़े लोगो से सीख
ताउम्र कौमा मे पड़ी रहती है जिन की आत्मा
ये कहीं का भी ना छोड़ेगी तुझे संसार मे
जितनी जल्दी हो सके तूँ आत्मा को मार दे
पांव मे बैठा है क्या पहने हुये तू बेड़ीया
काट बेड़ी आत्मा की कदमों को रफतार दे
देखना पछतायेगा और रोयेगा तू ज़ार ज़ार
उतरा आत्मा का जिस भी दिन चढा बुखार ये
इसकी तो आदत है देती पीछे से आवाज है
आगे बढना है तो हर आवाज इसकी नकार दे
फिर ना कहना मैने पहले तुमको चेताया नहीं
इससे पहले ये तुम्हें मारे तूं इस को मार दे
1 comment:
फिर ना कहना मैने पहले तुमको चेताया नहीं
इससे पहले ये तुम्हें मारे तूं इस को मार दे
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई!
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