एक उड़ान के भरते ही तुम हमको भुला बैठे हो सनम
अभी ना जाने तुमको कितनी और उड़ाने भरनी हैं
जाने किस मंजिल पहुंचे जो बात चीत भी बंद हुई
तुमको तो जीवन में ऎसी कई मंजिल तय करनी है
अभी ना जाने तुमको कितनी और उड़ाने भरनी हैं
जाने किस मंजिल पहुंचे जो बात चीत भी बंद हुई
तुमको तो जीवन में ऎसी कई मंजिल तय करनी है
वक्त के मारे इंसा से वैसे भी तुम्हे क्या मिलना था
मन ग़म से बुझा तन उम्र ढला दो चीजे ही मिलनी हैं
मेरे ग़म को देख के अपनी आँखे नाहक नम ना कर
मेरे कारण अपनी खुशियाँ काहे को कम करनी है
पहली बार तुम दूर गयी तकलीफ कुछ दिल को ज्यादा हुई
आख़िर तो दूरी सहने की आदत इक दिन हमें पदनी है
तुम्हे तो उड़ने की खातिर आकाश भी छोटा पड़ता है
मेरे पास तो पांव रख पाने को जमीं ही मिलनी है
मुझ संग रह कर पंख तेरे और भी कम हो जाने थे
और तुझे गगन में उड़ने की हसरत अभी पूरी करनी है
औरो से ऊंचा उठने का अहसास सुखद होता है बहुत
पर मत भूलो की हर उड़ान इक रोज़ जमीं पे उतरनी है
2 comments:
औरों से ऊंचा उठने का अहसास सुखद होता है बहुत
पर मत भूलो की हर उड़ान इक रोज़ जमीं पे उतरनी है
-सीख देती शानदार रचना!!
बहुत ही उम्दा रचना...शायद आपका अनुभव ही इसकी जान है ,सब कुछ हम सब की ज़िन्दगी से मिलता जुलता सा लगता है...
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