इसे मान लेना तुम बेशक अंतिम इच्छा मेरी
मरू तो हाथो में रख देना तस्वीर कोई इक तेरी
इसके बाद इक रोज़ खुदा से अपनी मुलाक़ात होगी
शिकवे शिकायत होंगे आमने सामने हर बात होगी
आखिर में पूछे गा खुदा अब बता क्या मर्ज़ी है तेरी
कहूंगा मैं कि मेरे खुदा बस इतनी अर्ज़ है मेरी
अगले जन्म का सफर अकेले मुझ से तय ना होगा
तय होगा जब हसीं हमसफ़र साथ मेरे कोई होगा
फिर पूछेगा मुझसे खुदा हमसफर हो तेरी कैसी
मरू तो हाथो में रख देना तस्वीर कोई इक तेरी
इसके बाद इक रोज़ खुदा से अपनी मुलाक़ात होगी
शिकवे शिकायत होंगे आमने सामने हर बात होगी
आखिर में पूछे गा खुदा अब बता क्या मर्ज़ी है तेरी
कहूंगा मैं कि मेरे खुदा बस इतनी अर्ज़ है मेरी
अगले जन्म का सफर अकेले मुझ से तय ना होगा
तय होगा जब हसीं हमसफ़र साथ मेरे कोई होगा
फिर पूछेगा मुझसे खुदा हमसफर हो तेरी कैसी
दिखला के तस्वीर तेरी कह दूंगा बिलकुल ऐसी
ना दो इंच इससे लम्बी ना दो इंच इससे छोटी
ना थोड़ी सी पतली इससे ना थोड़ी इससे मोटी
ना थोड़ी भी हलकी इससे ना थोड़ी इससे भारी
ना गोरी हो इससे ज्यादा ना हो इससे कारी
नयन नक्श हूबहू हो ऐसे जैसी ये है दिखती
जुल्फे भी बिलकुल वैसी हो जैसी ये है
चले तो बिलकुल ऐसी जैसी ये लहरा के चलती
बोले तो इस जैसा कानो में ज्यों मिश्री घुलती
कहूंगा मैं ए खुदा मेरे बस इतना और कर देना
इसके दिल में मेरे लिए थोड़ा सा प्यार भर देना
3 comments:
"अगले जन्म का सफर अकेले मुझ से तय ना होगा
तय होगा जब हसीं हमसफ़र साथ मेरे कोई होगा"
बिना किसी लाग-लपेट के सीधी-सादी सच्ची-अच्छी और भावपूर्ण रचना - शुभकामनाएं.
किसी शायर ने क्या खूब लिखा है।
सिमट न सका जिन्दगी का फैलाव,
कभी भी खत्म गम-ए-आशिकी नहीं होता।
निकल ही आती है थोङी सी गुंजाइश,
किसी का भी प्यार कभी आखिरी नहीं होता।
क्या बात है बेवफा पर वफा.
सही भी है क्योंकि बेवफाई में भी वफा शामिल है.
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