Thursday, January 28, 2010

इसे मान लेना तुम बेशक अंतिम इच्छा मेरी

इसे मान लेना तुम बेशक अंतिम इच्छा मेरी
मरू तो हाथो में रख देना तस्वीर कोई इक तेरी

इसके बाद इक रोज़ खुदा से अपनी मुलाक़ात होगी
शिकवे शिकायत होंगे आमने सामने हर बात होगी

 आखिर में पूछे गा खुदा अब बता क्या मर्ज़ी है तेरी
 कहूंगा मैं कि मेरे खुदा बस इतनी अर्ज़ है मेरी

अगले जन्म का सफर अकेले मुझ से तय ना होगा
 तय होगा जब हसीं हमसफ़र साथ मेरे कोई होगा

फिर पूछेगा मुझसे खुदा हमसफर हो तेरी कैसी
दिखला के तस्वीर तेरी कह दूंगा बिलकुल ऐसी 

 ना दो इंच इससे लम्बी ना दो इंच इससे छोटी
 ना थोड़ी सी पतली इससे ना थोड़ी इससे मोटी

ना थोड़ी भी हलकी इससे ना थोड़ी इससे भारी
 ना गोरी हो इससे ज्यादा ना हो इससे कारी

 नयन नक्श हूबहू हो ऐसे जैसी ये है दिखती
जुल्फे भी बिलकुल वैसी हो जैसी ये है

चले तो बिलकुल ऐसी  जैसी ये लहरा के चलती
 बोले तो इस जैसा कानो में ज्यों मिश्री घुलती

 कहूंगा मैं  ए खुदा मेरे  बस इतना और कर देना
 इसके दिल में मेरे लिए थोड़ा सा प्यार भर देना

3 comments:

Anonymous said...

"अगले जन्म का सफर अकेले मुझ से तय ना होगा
तय होगा जब हसीं हमसफ़र साथ मेरे कोई होगा"
बिना किसी लाग-लपेट के सीधी-सादी सच्ची-अच्छी और भावपूर्ण रचना - शुभकामनाएं.

हर्ष वर्द्धन हर्ष said...

किसी शायर ने क्या खूब लिखा है।
सिमट न सका जिन्दगी का फैलाव,
कभी भी खत्म गम-ए-आशिकी नहीं होता।
निकल ही आती है थोङी सी गुंजाइश,
किसी का भी प्यार कभी आखिरी नहीं होता।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

क्या बात है बेवफा पर वफा.
सही भी है क्योंकि बेवफाई में भी वफा शामिल है.