क्यों अपने रंग रूप का इतना तुझे गरूर है
है अब जवानी की दोपहरी तो सांझ कितनी दूर है
इक बार सांझ हो गयी तो रात भी घिर आयेगी
फिर लाख तूं करना यत्न वो बात न रह पायेगी
आँखों से कुछ दिखना नही तो नैन लड़ने किससे हैं
मुंह में दांत ही ना होंगे हंस के किस को दिखायेगी
बाल सब सफेद होगें और झड़ने भी लगेगे
फिर ये जाल जुल्फों का किस पे तूं फैलाएगी
है अब जवानी की दोपहरी तो सांझ कितनी दूर है
इक बार सांझ हो गयी तो रात भी घिर आयेगी
फिर लाख तूं करना यत्न वो बात न रह पायेगी
आँखों से कुछ दिखना नही तो नैन लड़ने किससे हैं
मुंह में दांत ही ना होंगे हंस के किस को दिखायेगी
बाल सब सफेद होगें और झड़ने भी लगेगे
फिर ये जाल जुल्फों का किस पे तूं फैलाएगी
ना उमंग तेरे मन में कोई ना कशिश तेरे तन में होगी
किससे फिर होगा मिलन फिर किससे मिलने जायेगी
इसलिए कहता हूँ मेरी मान कल पे टाल मत
ढूँढ़ हर जवाब मुझ में खुद से कर सवाल मत
जो मिला है वक्त अब, हर रोज मिल पाता नहीं
कल का क्या है ये कभी आता कभी आता नहीं
कुदरत की हर सौगात का कर पूरा इस्तेमाल तूं
यूं भी ढल जाएगा हुस्न कितना भी संभाल तूं
चाहने वालों की चाहत जो कोई ठुकराता है
खुद भी चाहत के लिए इक उम्र तरस जाता है
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