इससे तो अच्छा था नश्तर ही चुभा जाता कोई
मरहम लगाये बिन अगर जाना था वापिस यार को
बीमार जानता है जब कि मर्ज़ लाइलाज है
बेकार है झूठी तसल्ली देना फिर बीमार को
गर जीता जाए दिल किसीका हार कर अपना अहम
जीत से बेहतर समझ लो ऎसी हसीं हार को
माझी ही चाहता ना था कि पार पहुंचाए हमें
छोड़ गया था कीनारे पर ही वो पतवार को
हम किनारे पर भी होते तो भी डूबते सनम
बेवजह मुजरिम ना ठहरा माझी या मझधार को
जख्मो को सहलाता ना तो भी कोई ग़म ना था
और तो जख्मी ना करता जालिम मेरे प्यार को
साथ छोड़ने की बात करता था यार बार बार
हमने कहा आमीन और दिया छोड़ इस संसार को
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