Sunday, January 17, 2010

आसमां छोटा पड़ेगा इक दिन उसकी परवाज को

शायद ये जीत का  हुनर उसको  खुदा की देंन है
हर एक बाजी जीतता है पहले बाजी हार के

ये नही शतरंज ये तो इश्क की बिसात है
जीती जाती है यहां हर एक बाजी हार के

जान खुद दे दूंगा हंस के  कह दो  मेरे यार से
काम नाहक ले रहा क्यों  तीर से तलवार से

आसमां छोटा पड़ेगा इक दिन उसकी परवाज को
 बाहर निकलेगा परिंदा जो पिंजरे की दरो दीवार से

छाछ के भी हैं जले नहीं दूध के ही हम जले
हर शै को पीना पड़ता है अब फूंक मार मार के

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