Thursday, April 8, 2010

ऐसे भी तड्पाता है कोई यार अपने यार को

या तो वक्त से कहो रोके अपनी रफ्तार को
या मना लाये वो जाके रूठे हुये यार को
हर सांस पे लगता है ये अब थमी कि तब थमी
ऐसे भी तड्पाता है कोई यार अपने यार को
या तो खुद आओ या सांसो से कहो कि आये ना
कोई तो राहत मिले इस इश्क के बीमार को
और दर्द और जख्म हमको वो हर शख्स दे गया
जान के राहत ए मरहम अपनाया निसके प्यार को
कडवा हुआ लेकिन चलो ये भी तजुरबा हो गया
क्या सिला मिलता है इस जहा मे सच्चे प्यार को
खुद ही अपना सिर कत्लगाह जाके हमने रख दिया
अब दोष क्या देना नाहक कातिल को या तलवार को
ना बचा अहसास ना विश्वास तो फिर क्या बचा
छाती से क्यों चिपकाये रखें फिर मरे हुये प्यार को

1 comment:

Shekhar Kumawat said...

खुद ही अपना सिर कत्लगाह जाके उसने रख दिया
अब दोष दे रहा है नाहक कातिल को या तलवार को

bahut khub

http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat