या तो वक्त से कहो रोके अपनी रफ्तार को
या मना लाये वो जाके रूठे हुये यार को
हर सांस पे लगता है ये अब थमी कि तब थमी
ऐसे भी तड्पाता है कोई यार अपने यार को
या तो खुद आओ या सांसो से कहो कि आये ना
कोई तो राहत मिले इस इश्क के बीमार को
और दर्द और जख्म हमको वो हर शख्स दे गया
जान के राहत ए मरहम अपनाया निसके प्यार को
कडवा हुआ लेकिन चलो ये भी तजुरबा हो गया
क्या सिला मिलता है इस जहा मे सच्चे प्यार को
खुद ही अपना सिर कत्लगाह जाके हमने रख दिया
अब दोष क्या देना नाहक कातिल को या तलवार को
ना बचा अहसास ना विश्वास तो फिर क्या बचा
छाती से क्यों चिपकाये रखें फिर मरे हुये प्यार को
1 comment:
खुद ही अपना सिर कत्लगाह जाके उसने रख दिया
अब दोष दे रहा है नाहक कातिल को या तलवार को
bahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
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