क्यों होता है ऐसा
ऐसा क्यों होता है
जरा सा देकर चाहते हैं एहसान बड़ा हो जाए
चंद ईंटो और पत्थर से कोई ताज खडा हो जाए
महबूब मिले कोई ऐसा जो हम पे प्यार लुटाये
दोस्त मिले तो ऐसा जो हम पे जान दे जाए
हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी आये चोखा
मेरी मानो ऎसी सोच है खुद को देना धोखा
जितना गुड डालोगे उतना ही तो मीठा होगा
ऐसा ही होता आया है सदा ही ऐसा होगा
क्यों होता है ऐसा
ऐसा क्यों होता है
ऐसा क्यों होता है
जरा सा देकर चाहते हैं एहसान बड़ा हो जाए
चंद ईंटो और पत्थर से कोई ताज खडा हो जाए
महबूब मिले कोई ऐसा जो हम पे प्यार लुटाये
दोस्त मिले तो ऐसा जो हम पे जान दे जाए
हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी आये चोखा
मेरी मानो ऎसी सोच है खुद को देना धोखा
जितना गुड डालोगे उतना ही तो मीठा होगा
ऐसा ही होता आया है सदा ही ऐसा होगा
जाने क्यों फिर फिर भी हर कोई गधा ढूंढता ऐसा
जो वजन तो पूरा ढोए लेकिन घास जरा ना खाये
ऐसा क्यों होता है
1 comment:
जरा सा देकर चाहते हैं एहसान बड़ा हो जाए
चंद ईंटो और पत्थरों से कोई ताज खडा हो जाए
आज के दौर की मानसिकता को बखूबी बयां किया आपने....
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