चलो माना के हमने उम्र भर धोखा ही खाया है
और माना ये कि नासमझी में अक्सर ही गंवाया है
अरे तूं तो सयानी थी कदम गिन गिन के रखती थी
मगर ऐ जिंदगी ये तो बता, तूने क्या पाया है
चले आते हैं ग़म तूं ही बता हम कब बुलाते हैं
खुशी तूं क्यों नही आती तुझे अक्सर बुलाया है
नही तन के तेरे कपडे बदल डालोगे पल भर में
यूं अपनी सोच या फितरत कहाँ कोई बदल पाया है
सही या गलत से तुम को कहाँ कुछ लेना देना है
किसीकी मानने में शायद फायदा नजर आया है
तुम्हे उस पार पहुंचाने को मैं तैयार था हर दम
किनारा समझकर मझधार क्यों खुद को डुबाया है
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