रिहते टूटें साथी छूटे लेकिन तूं आंखें नम ना कर
पतझड़ के मौसम में अक्सर पेड़ से पत्ते झड़ जाते है
अपनी धुन में मस्त रहे हो नहीं सुनी कोई बात किसी की
अपनी तरह से जीने वाले यूं ही अकेले पड़ जाते हैं
ये देख के तुफाँ के आगे कभी टिक पाना आसान नहीं
घास तो अक्सर झुक जाता है पेड़ हमेशा अड़ जाते हैं
जिद्द छोडो तो बेहतर है , है वक्त संभलने का अब भी
तेज तुफाँ में अड़ने वाले अक्सर जड़ से उखड़ जाते की
माना तुम खिलाड़ी हो पक्के पर ये चौसर का खेल नहीं
इस जीवन में पड़ते पड़ते कई पासे उलटे पड़ जाते हैं
2 comments:
माना तुम खिलाड़ी हो पक्के पर ये चौसर का खेल नहीं
वैचारिक ताजगी लिए हुए रचना विलक्षण है।
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