या तो वक्त से कहो रोके अपनी रफ्तार को
या कही स ढूंढ़ लाये जाके मेरे यार को
यार को हम बीच राह छोड दे मुमकिन नहीं
इससे तो बेहतर है ये हम छोड दे सन्सार को
दिल में किसीके बीज शक का अकुरित जब हो गया
दिन बचे क्या बाकी फिर दम तोडने मे प्यार को
आन्धी ना तूफान फिर नैया लगी क्यों डोलने
माझी छोड वैठा है विश्वास की पतवार को
जब किया फूलो ने दामन को किया मेरे तार तार
दोष नाहक ही दिये ता उम्र हमने खार को
डूबता ना गर तो फिर और हो सकता था क्या
नैया से उतरा किनारा समझ वो मझधार को
2 comments:
बहुत सुंदर।
wow !!!
achi kavita he ye
डूबता ना गर तो फिर और हो सकता था क्या
नैया से उतरा किनारा समझ वो मझधार को
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
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