इसके बाद शायद ना लिखु शायद ना लिख पाऊं
सोचा चलते चलते आखिरी रचना लिखता जाउं
अपने अपने मापदण्ड खुद बना लिये है सबने
और उन्ही मापदण्डो पे औरो को लगते कसने
अच्छे बुरे की परिभाषा कुछ ऐसी सब ने बनायी
जो बात लगी अच्छी खुद को उसमे ही दिखी अच्छाई
अपनी गलती नज़र नही आती है उनको कोई
जब भी कुछ भी गल्त हुआ गलती दूजे मे पाई
किसी का सुख थोडा भी उनसे नही है देखा जाता
खुद तो सुख देना ही नही कोई और भी क्यों दे जाता
खुद्द का ढौग पाखण्ड भी उनको धर्म नज़र है आता
दूजा करे धर्म भी तो पाखण्डी है कहलाता
सिर्फ किताबी बातें पढ कर जीते सपनो की दुनिया मे
असली दुनिया मे क्या होता उससे नही कोई नाता
भूखे रहो प्यासे मर जाओ मन मारो बाबा बन जाओ
धर्मगुरूओ की मौज़ करो अपना'सब कुछ'उन पे लुटाओ
खुद तो त्यागो पैसा लेकिन उनका घर भरते जाओ
घर वालो को मारो पीटो उनके आगे शीश झुकाओ
बाबा घूमेगा कारो मे भले सडक पे तुम आ जाओ
पाई पाई बचा बचा के बाबा के चरणों मे चढाओ
तन मन धन सब उन गुरुओ को करते है वो अर्पण
जिन गुरुओ ने कभी नही देखा है मन का दर्पण
उनका ढोगी जीवन उनको सदचार नजर आता
जिन्दादिली से जीने वाला उनको जरा ना भाता
मेरे गीत गजल कविता सब उनको नही है भाते
क्योकि ये असली जीवन जीने की राह दिखाते
इसीलिये सोचा कि लिख कर उनका दिल क्यों दुखाऊ
माफ मुझे करना यारो जो अब कभी नजर ना आऊं
9 comments:
bahut hi badhiya rachna...keep it up
खुद्द का ढौग पाखण्ड भी उनको धर्म नज़र है आता
दूजा करे धर्म भी तो पाखण्डी है कहलाता.nice
उनका दिल क्यों दुखाऊँ ?
अपना भी मत दुखाइयेगा ।
दूसरों की आलोचना पर इतना न सोचिये स्वातःसुखाय लिखिये । जिसे अच्छा लगे वह पढे ना तो ना पढे ।
are bhai assa kya hua aap ko jo nahiu likh payenge aage aap
shekhar kumawat
रचना तो आपकी बहुत अच्छी लगी .. पर इंतजार रहेगा आपकी अगली रचनाओं का !!
Faziya riyaaz ji ,suman ji . vivek singh ji. aap sab kaa bahut bahut shukriya rachnaa ko pasand karne ke liye.
Mrs asha joglekar ji,shekhar kumawat,aur sangeeta puri ji aap kaa bahut bahut shukriya utsaah vardhan ke liye
बहुत ही सुंदर प्रस्तुती......
अगली कविता का बेसब्री से इंतज़ार ............
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