कभी खेला करते थे होली जिद्द कर के हम सबसे
पर जब से हुआ बदरंग ये जीवन छुए नही रंग तबसे
यूं तो होली खेलने अब भी साथी घर आते हैं
पर जीवन हो बदरंग तो फिर रंग कहाँ कोई भाते हैं
तुमने जानू कह कर मेरी जान ये क्या कर डाला
रंगहीन जीवन में मेरे फिर से रंग भर डाला
फिरसे जगा दी सोई उमंगे तुमने बन हमजोली
मन में हुड्द्म्ग मचा रही है इच्छाओं की टोली
तुमने हम पर रंग डाल कर तो दी है शुरुआत
देखना अब किन किन रंगो की होगी तुम पर बरसात
अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होली
अब ना बचेगी तेरी चुनरिया अब ना बचेगी होली
डरते डरते चुटकी भर रंग इक दूजे को लगाना
मैं ना मानु इसको होली मै ठहरा दीवाना
बस माथे गुलाल का टीका ये भी हुई कोई होली
ना रंगो से रंगी चुनरिया ना ही भीगी चोली
अरे होल़ी में भी सीमाओं का क्या रखना अहसास
भूखा ही मरना ही तो फिर तोड़ना क्यों उपवास
खेलनी ही तो जम कर खेलो मस्ती भरी ये होल़ी
मातम की तरह ना मनाओ होल़ी मेरे हमजोली
होल़ी को होल़ी सा खेलो या रहने दो हमजोली
जितनी भी होनी थी होल़ी तुम संग होल़ी होल़ी
1 comment:
आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice
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