Saturday, February 27, 2010

गंगा खुद नाले में गिर जाए तो नाला क्या करे

मंजिले सब से जुदा हैं रास्ते भी हैं जुदा
हमसफर कोई ना बने तो ये  मुसाफिर क्या करे
 
 नाले का गंगा में मिलने का तो कोई हक़ नही
 गंगा खुद नाले में मिल जाए तो नाला क्या करे
 
आग लगने से बचा रखा था सूखी घास को
चिंगारी कोई डाले तो घास ना जले तो क्या करे
 
 साजे दिल के तार ढीले खुद ही तो उसने कसे
 छूने से फिर सगीत बज उठा तो साज क्या करे
 
 आग पे तो खुद कडाही अपने हाथों से चढा दी
अब कडाही ना तपे तो फिर कडाही क्या करे
 
अपने हाथों में उठाकर खुद शिखर तक ले गये
 फिर छोड़ने से नीचे कोई ना गिरे तो क्या करे
  किसी को आजमाने का ये तो तरीका ना हुआ
खुद ही परोसी थाली और मुहं में निवाला खुद दिया
भूखा ऐसे में ना रोटी  खाए तो फिर क्या करे

 वो' हाँ 'करे तो भी मरे वो 'ना' करे तो भी मरे

2 comments:

Randhir Singh Suman said...

आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice

Arshad Ali said...

wah wah
samjhte samjhte samajh me aa hin gaya