तुम पहले दोस्त बनी होती तो बात ही कुछ और होती
कुछ पहले और मिली होती तो बात ही कुछ और होती
ये सूरज पहले निकल आता मेरे दिन कुछ और हुए होते
ये चांदनी पहले खिली होती तो रात ही कुछ और होती
ता उम्र अकेले तन्हा ही मै यहाँ वहां भटका ही किया
तेरा साथ मिला होता पहले तो बात ही कुछ और होती
जीवन के इस मरुथल में सूरज तो दहकते मिले बहुत
ये बदली पहले घिरी होती तो बरसात ही कुछ और होती
अब मुंह में दांत नही बाक़ी तो चनो का बोलो क्या कीजे
ये पोटली पहले मिली होती तो बात ही कुछ और होती
धरती तो क्या ये आसमान भी हम को छोटा पड़ जाता
कुछ पहले उड़ान भरी होती तो बात ही कुछ और होती
चंद खुशियाँ तेरी झोली में भर दूँ कोशिश है अब भी मेरी
कहीं पहले मिली होत्ती तो ये सौगात ही कुछ और होती
किस किस बात की बात करूं बस इतनी बात समझ लीजे
कुछ पहले बात हुई होती तो हर बात ही कुछ और होती
2 comments:
बहुत अच्छी रचना |
वाह....बहुत सुन्दर रचना....
सहज सुन्दर सरस अभिव्यक्ति...
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