Tuesday, March 3, 2015

ये दुनिया है यहाँ इन्साफ एक दिन हो के रहता है

भरी दुनिया में आखिर देख लो हम हो गए तनहा
किसी को हम ने छोड़ा तो किसी ने हम को छोड़ा है

चले थे जीतने हम युद्ध सवार हो के जिस घोड़े पर
लगाई एड तो पाया कि  वो इक लंगड़ा घोडा है

हम  अपनी राह पे चलते तो पा लेते कोई मंज़िल
क्यों तुमने अपनी राहों को मेरी राहों  से जोड़ा है

ये दुनिया है यहाँ इन्साफ एक दिन हो के रहता है
किसी का मैंने  तोड़ा दिल किसी ने मेरा तोडा है

बहुत फिसलन भरी होती हैं राहें इश्क की यारों
भले ही देखने में लगता रस्ता  काफी  चौड़ा है

बड़ी  मंज़िल के अक्सर   रास्ते सीधे नही होते
सहज पाने की जिद को किसलिए नहीं तूने  छोड़ा है

क्यों अपनी बदनसीबी का खुदा को दोष देते हो
ना समझी में नसीब अपना सभी ने खुद ही फोड़ा है

गिला कैसा कि हम मुँह  मोड़ तेरे दर से उठ आये
 तूने भी  तो अपना मुँह यूँ अक्सर हम से  मोड़ा है

कोई तो बात होगी ही जो  मंजिल के करीब आके
मुसाफिर छोड़ के मंज़िल जो उलटे पाँव दौड़ा  है




1 comment:

Harshvardhan Srivastav said...

सुन्दर पंक्तियाँ. आभार..

नई कड़ियाँ :- आम बजट के कुछ दिलचस्प ज्ञान तथ्य