Thursday, March 19, 2015

यूँ प्यार नहीं करते मेरी मान ऐ जानेमन

उसको भी शिकायत है  हम को  भी शिकायत है
दिल माने तो क्यों माने कि दोनों में मोहब्बत है

कुछ फूल भी बोये थे मेहनत से बहुत हम ने
कांटे ही नज़र आये ,मौसम की शरारत है

मंज़िल के करीब आके यूँ राह बदल लेना
कुछ उसका मुकदर है कुछ अपनी भी किस्मत है

चाहकर भी मनचाहे रंग भर पाये नहीं हम तो
शायद तस्वीर में  कुछ पहले की कोई रंगत है

वो मुझ से करे नफरत मै  प्यार इसे मानू
कुछ सोच है ये उसकी कुछ दुनिया की फितरत है

इक बार कोई रूठे तो सो बार मनाओ उसे
हर रोज़ कोई रूठे, छोडो, उसकी ये आदत है

यूँ प्यार नहीं करते मेरी मान ऐ जानेमन
जिसमे ये लगे लगने ये कौन सी आफत है










 

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