मुट्ठी से रेत की तरह फिसलती रही ज़िंदगी
कभी आइस क्रीम की तरह पिघलती रही ज़िंदगी
लाख समझाया इसे पाने की उसको ज़िद ना कर
पर इक बच्चे की तरह मचलती रही ज़िंदगी
मंज़िल कहाँ मिलती हर इक राह थी फिसलन भरी
हर मोड़ पे हर कदम पे फिसलती रही ज़िंदगी
कोशिश भी की काबिल भी थे पर कुछ न हासिल हो सका
जो पास था उसी से ही बहलती रही ये ज़िंदगी
लोग थे जाने कहाँ से कहाँ पहुँचते गए
अपने ही घर के आँगन में टहलती रही ये ज़िंदगी
लेकिन कोई तो बात है जो लाख मुश्किलो में भी
गिरती रही पड़ती रही पर सभलती रही ये ज़िंदगी
जैसी भी थी वैसी ही है कुछ बदल पाये नही
कहने को मेरे कहने पर बदलती रही ये ज़िंदगी
कभी आइस क्रीम की तरह पिघलती रही ज़िंदगी
लाख समझाया इसे पाने की उसको ज़िद ना कर
पर इक बच्चे की तरह मचलती रही ज़िंदगी
मंज़िल कहाँ मिलती हर इक राह थी फिसलन भरी
हर मोड़ पे हर कदम पे फिसलती रही ज़िंदगी
कोशिश भी की काबिल भी थे पर कुछ न हासिल हो सका
जो पास था उसी से ही बहलती रही ये ज़िंदगी
लोग थे जाने कहाँ से कहाँ पहुँचते गए
अपने ही घर के आँगन में टहलती रही ये ज़िंदगी
लेकिन कोई तो बात है जो लाख मुश्किलो में भी
गिरती रही पड़ती रही पर सभलती रही ये ज़िंदगी
जैसी भी थी वैसी ही है कुछ बदल पाये नही
कहने को मेरे कहने पर बदलती रही ये ज़िंदगी
4 comments:
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कोशिश भी की काबिल भी थे पर कुछ न हासिल हो सका
जो पास था उसी से ही बहलती रही ये ज़िंदगी
लोग थे जाने कहाँ से कहाँ पहुँचते गए
अपने ही घर के आँगन में टहलती रही ये ज़िंदगी
बहुत अच्छा ब्लॉग मैनेज कर रहे हैं. और कंटेंट भी उम्दा हैं बधाई।
कोशिश भी की काबिल भी थे पर कुछ न हासिल हो सका
जो पास था उसी से ही बहलती रही ये ज़िंदगी
लोग थे जाने कहाँ से कहाँ पहुँचते गए
अपने ही घर के आँगन में टहलती रही ये ज़िंदगी
bada acha likha hai sir , maza aagaya padh kar ,
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