ज़ब से वो हम से और उनसे हम मिलने लगे
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे
डर ये है कि फिर नया कोई जख्म ना मिले हमे
उम्मीद ये कि शायद किस्मत अबसे बदलने लगे
डर डर के राहे इश्क मे रखना था हर कदम मगर
इक बार देखा फिर तो कदम खुद ब खुद चलने लगे
ना कोई चाहत ना थी उम्मीद ही दिल मे कोई
वो पहलु मे बैठे तो अरमां फिर से मचलने लगे
अब ये भी घर मे यार का आने में आना है बता
आये सुबह दो बातें की हुई सांझ तो चलने लगे
इससे अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई
मरहम लगाये बिन क्यों यार वापिस घर चलने लगे
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे
डर ये है कि फिर नया कोई जख्म ना मिले हमे
उम्मीद ये कि शायद किस्मत अबसे बदलने लगे
डर डर के राहे इश्क मे रखना था हर कदम मगर
इक बार देखा फिर तो कदम खुद ब खुद चलने लगे
ना कोई चाहत ना थी उम्मीद ही दिल मे कोई
वो पहलु मे बैठे तो अरमां फिर से मचलने लगे
अब ये भी घर मे यार का आने में आना है बता
आये सुबह दो बातें की हुई सांझ तो चलने लगे
इससे अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई
मरहम लगाये बिन क्यों यार वापिस घर चलने लगे
1 comment:
अब ये भी घर मे यार का आने में आना है बता
आये सुबह दो बातें की हुई सांझ तो चलने लगे
बहुत पसंद आया ये शेर यू तो पूरी गज़ल ही कूबसूरत है ।
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