Monday, November 26, 2007

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा किसी और का कोई दोष नही, बस मेरी ही नादानी है
 जाने मै कैसे भूल गया मेरा सफर तो रेगिस्तानी है
 इन रेतीली राहो में सदा सूरज को दहकता मिलना है
 बून्दों के लिये यहाँ आसमान को तकना भी बेमानी है
 बदली के बरसने की जाने उम्मीद क्यों मेरे मन में जगी
 यहां तो बदली का दिखना भी , खुदा की मेहरबानी है
 यहाँ रेत के दरिया बहते हैं कोई प्यास बुझाएगा कैसे
प्यासे से पूछो मरूथल में किस हद तक दुर्लभ पानी है
यहाँ बचा बचा के रखते हैँ सब अपने अपने पानी को
 यहाँ काम वही आता है जो अपनी बोतल का पानी है
 पानी पानी चिल्लाने से यहाँ कोई नहीं देता पानी
प्यासा ही रहना सीख अगर तुझे अपनी जान बचानी है
मृगतृष्णा के पीछे दोड़ा तो दौड़ दौड़ मर जायेगा
 पानी तो वहाँ मिलना ही नही, बस अपनी जान गंवानी है
 इसे प्यासे की मजबूरी कहूँ या चाह कहूँ दीवाने की
जब जानता है मृगतृष्णा है क्यों मानता है कि पानी है
 अब इस में तेरा दोष कहाँ , मेरी ही तो नादानी है
 तुम भी तो थी मृगतृष्णा ही मैनें समझा कि पानी है