Thursday, October 16, 2008

पेट भरना ही नही काफी हॆ जीने के लिये

बाद तेरे इक इक कर सब राज यूं खुलते गये
 लगते थे जो अपने वो सब गैर निकलते गये
 ना कोई आता हॆ ऒर ना ही बुलाता हॆ हमे
 दामन तो क्या सब नजरे भी बचा के निकलते गये
 बाद तेरे सिर्फ गैरो से रहा नाता मेरा
अपने तो ले ले चुस्कियां हमपे ही हंसते गये
 मेरी जरुरत को ना समझा है न समझेगा कोई
 या यूं कहो कि जानकर अन्जान सब बनते गये
 पेट भरना ही नही काफी है जीने के लिये
 हालाकि जीने के लिये हम पेट ही भरते गये
 देखले इस अन्न ने क्या दिखलाया रंग तेरे बिना
 तन से हम जिन्दा रहे पर मन से हम मरते गये
 व्यस्त थे ऒर मस्त थे अपने अपने घर में सब
दूर रहने के बहाने सब को ही मिलते गये
 जिन की याद मे गुजारे हम ने अपने रात दिन
 हमें खाली वक्त याद कर वो रस्म पूरी करते गये
 बन के बेगैरत ही रखी हमने सबसे दोस्ती
 देख मजबूरी मेरी सब और भी तनते गये
 ना तो रिश्तेदार ना मेहमान सा आया कोई
घर मेरे जो आये इक अहसान सा करते गये
 रिश्ता बस तब तक चला नाता तब तक ही निभा
 जैसा वो चाहते थे वैसा जब तक हम करते गये

Wednesday, October 15, 2008

सपनो मे बुला पाऊं तुम को इतना तो दो अधिकार प्रिये

माना कि तुम खफा हो मुझसे, लेकिन खुद पे कुछ रहम करो
 वर्षा ॠतु मे मिट जाती है वर्षो की तकरार प्रिये
 ऐसी ही शरमाती रही तो मै क्या तुम भी पछताओगी
शरम शरम मे मत कर लेना वर्षा ॠतु बेकार प्रिये
 मुझ को तुम से प्यार बहुत है मैने सौ सौ बार कहा है
मेघ साक्षी रख के तुम भी कह दो ये इक बार प्रिये
 सावन के मौसम मे लगा हर ओर उमंगो का मेला
आओ हम भी दबी उमंगे कर डाले साकार प्रिये
 सोच सोच में बिता दिए है कितने सावन तुमने
 अब तक मत सोचो जो भी करना है कर डालो इस बार प्रिय 
डर के जिये तो खाक जिये ऐसा जीना भी क्या जीना
 इस पार बुलाता रहूँ तुम्हे तुम सदा रहो उस पार प्रिये
 मुझ बिन जीना तेर जीना हो सकता हॆ कुछ बेहतर हो
 तुम बिन जीना मेरा जीना हुआ बहुत दुश्वार प्रिये
 तेरी सोच तक अच्छा नही लेकिन तेरा दीवाना हूं
ऐसा वैसा जैसा भी हूं अब कर भी लो स्वीकार प्रिये
 तुम ना झूलो बांहो मे मेरी ना मुझ को अंगीकार करो
सपनो मे बुला पांऊ तुमको इतना तो दो अधिकार प्रिये
 चलो छोडो हटाओ बात मेरी नही तुम से कुछ होने वाला
 घर जाओ गीले कपडे बदलो कौफी पीकर आराम करो
तुम बुरी तरह से भीगी हो, हो जाओ ना तुम बीमार प्रिये