Thursday, February 14, 2008

रैड रोज़ और 'वो'

पैरों से मसलोगी या फिर चूमोंगी होठों से उसे
भेजा तो है हमने तुझे इक गुलाब अभी अभी
सबसे सुर्ख रेड रोज मेरा हो ये सोच कर
खूने जिगर से उसको सींचा था कभी कभी
 उस फूल मे दिल भी मेरा आये तुझे नजर
 दिल के लहू से गुलाब ये रंगा है अभी अभी
 ता उम्र बदली करवटें ना नींद थी न ख्वाब थे
 लगी आँख तो दिखा है तेरा ख्वाब अभी अभी
 ता उम्र मिले जख्म, और अब जाके तुम मिली
 खुदा ने किया चुकता मेरा हिसाब अभी अभी
 बन के सवाल सारी उम्र जो उलझाता रहामुझे
 मिलने से तेरे मिल गया वो जवाब अभी अभी
 समझेंगे अब है प्यार क्या और होती है क्या वफा
लगी हाथ अपने है प्यार की इक किताब अभी अभी

Wednesday, February 13, 2008

सफर का अन्त

कितनी तकलीफ हुई होगी, उस शख्स को, तुम सोचो तो जरा
 जिसे सफर के अन्त में पता चले , वो जितना चला बेकार चला
मन्जिल हो अभी भी दूर खड़ी , और खत्म हुआ जिसका रस्ता
मन्जिल ने हो जिस राही से कहा, नादान, तूँ नाहक दौड़ा किया
मुझ तक कोई राह नहीं आती , तूँ मुझ तक पंहुच नहीं सकता
 मेरे चारों और मीलों खाई, नहीं जिसको लाँघ कोई पाता
 राही भी अजब दीवाना था , अपनी धुन में मस्ताना था
उस राही ने मन्जिल से कहा, काहे को रही इतना इतरा
 जिस हद तक आता था रस्ता, उस हद तक तो मैं आ पंहुचा
तुम चाहती अगर, बाकी दूरी ,पल भर में ही मिट सकती थी
इक कदम बढ़ाना था तुमको, मुझको मन्जिल मिल सकती थी
 लेकिन तुमने चाहा ही नहीं, और मेरे चाहने से होना था क्या
आगे का सफर संभव ही नहीं , ना तुम चाहो , ना चाहे खुदा
, आया तो बड़ी चाहत से था मैं, पर, अन चाहे मन लौट चला
 फिर भी तेरे जीवन में कभी इतना सूना पन आ जाये
ना राह दिखे ना राही ही , और तूँ खुद से घबरा जाये
 तब अहम किनारे पे रखना , इक बार पुकारना धीरे से
उस रोज भी तेरा दिवाना , तेरे आसपास मिल जायेगा
वीरान पड़ी तेरी राहों का, फिर से राही बन जायेगा
आखिर तो तेरा दीवाना है , कहाँ तुझ बिन जान गंवायेगा

सफर का अन्त

कितनी तकलीफ हुई होगी, उस शख्स के बारे में सोचो जिसे सफर के अन्त में पता चले , वो जितना चला बेकार चला मन्जिल हो अभी भी दूर खड़ी , और खत्म हुआ जिसका रस्ता मन्जिल ने हो जिस राही से कहा , नादान तूँ नाहक दौड़ा किया मुझ तक कोई राह नहीं आती , तूँ मुझ तक पंहुच नहीं सकता मेरे चारों और मीलों खाई, कोई जिसको लाँघ नहीं सकता तब राही ने मन्जिल से कहा, काहे को रही इतना इतरा जिस हद तक आता था रस्ता, उस हद तक तो मैं आ पंहुचा तुम चाहती तो बाकी दूरी पल भर में ही मिट सकती थी इक कदम बढ़ाना था तुमको, मुझको मन्जिल मिल सकती थी लेकिन तुमने चाहा ही नहीं, और मेरे चाहने से होना था क्या आगे का सफर संभव ही नहीं, ना तूँ चाहे ना चाहे खुदा ओ के टा टा बाई बाई , तेरी राहों का राही लौट चला फिर भी तेरे जीवन में कभी इतना सूना पन आ जाये ना राह दिखे ना राही ही , तूँ खुद से भी घबरा जाये तब अहम किनारे पे रख के, इक बार पुकारना धीरे से उस रोज भी तेरा दिवाना , तेरे आसपास मिल जायेगा वीरान पड़ी तेरी राहों का, फिर से राही बन जायेगा आखिर तो तेरा दीवाना है , तुझ बिन ये कहाँ और जायेगा

Monday, February 11, 2008

इजहार-ए-इश्क ना होने वाली वैलेन्टाईन से

हमने किया इकबाल-ए-जुर्म और आपने दे दी सजा अच्छा किया अब इसमे तेरी क्या खता इतिहास है इसका गवाह इससे ज्यादा हुस्न ने है कब किसी को कुछ दिया आपने जो दी सजा यूँ तो हमें कबूल है लेकिन तूँ दिल पे हाथ रख और फिर बता इजहार-ए-इश्क करना क्या कोई इतनी बड़ी भूल है अपनी कब चाहत रही कि गुलशन पे हम कब्जा करें कब जताया हमनें हक कि तुझसा सुन्दर फूल मेरे चमन का फूल है हाँ हमको ये पता ना था कि गुलशन के आसपास भी अपना निकलना है मना किसी फूल की महक भी उसको सूंघने का हक नहीं जिसके जीवन में मुकद्दर ने लिखे बस शूल हैं बस अब इतना कहना है मुझे कि अपना भी इक उसूल है दोहराते हम कभी नहीं जब भी हुई कोई भूल है इस बार क्या कभी जिन्दगी में वैलेन्टाईन मनायेंगे नहीं और अपनी तो तूँ छोड़ किसी और के आगे भी हम वैलेन्टाईन बनने के लिये हाथ फैलायेंगे नहीं