शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Saturday, March 6, 2010
इसके बाद शायद ना लिखु शायद ना लिख पाऊं
जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना
Friday, March 5, 2010
जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नहीं मै कह सकता
जो यार के काम ना आये कभी उसे यार नही मै कह सकता
जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नही मै कह सकता
सह सकता हूँ दुःख गम या तकलीफ चाहे जितनी भी हो
बस खुशी मुझे कोई दे जाए तो थोड़ी भी नही सह सकता
जुबां पे कुछ और दिल में कुछ ये रीत है दुनिया वालो की
लो तुम ही सम्भालो ये दुनिया मै तो इसमें नही रह सकता
या तो खुल के जी लेने दो या फिर महफ़िल से जाने दो
महफिल की रस्में निभाने को मैं तो जीना नहीं कह सकता
मुझको तो उड़ने के लिए आकाश भी छोटा पड़ता है
पिंजरे के पंछी की तरह मैं दायरों में नही रह सकता
प्यार वफा चाहत अपनापन जो चाहो नाम दो तुम इसको
बात सिर्फ इतनी है उस बिन दो पल भी नही रह सकता
है हिम्मत तो आ हाथ थाम नही हिम्मत तो फिर घर में बैठ
बुजदिल के हाथ में हाथ किसीका ज्यादा देर नही रह सकता
मैं ज़िंदा हूँ विपरीत दिशा बहने की ताकत रखता हूँ
मुर्दा मछली सा पानी के संग साथ साथ नहीं बह सकता
Thursday, March 4, 2010
कौन है वो मेरा क्या है तुम ही कुछ बतलाओ
मेरा होकर भी मेरा नहीं क्या लगता है समझाओ
दूर दूर रहते हैं लेकिन पास पास भी रहते हैं
दिल की सारी बाते अक्सर इक दूजे से कहते हैं
इक दूजे के काँधे पे सर रख कर हम रोये हैं
इक दूजे का हाथ पकड़ अक्सर गलियों में खोये हैं
दिल में समाये हैं हरदम बाहों में समाये कभी नहीं
एक ही थाली ,एक कटोरी इक चम्मच से खाते हैं
इक दूजे के पोंछे आंसू जब भी हम रोयें हैं
घर का मालिक मै हूँ तो वो भी नहीं उसकी चेरी
तुम ही कहो कि कौन है वो और क्या लगती है मेरी
Wednesday, March 3, 2010
जला है यूं घर का मेरे तिनका तिनका
उजालो में आने से डरते बहुत हैं
तेरे आने से घर हो सकता था रौशन
पर आँखे चोंधियाने से डरते बहुत हैं
जिसे भी दिखाए उसी ने कुरेदे
जख्मो की अपनी यही दास्ताँ है
बेवजह नही जो किसी मेहरबान को
जख्म अब दिखाने से डरते बहुत हैं
अभी तक भी सब की 'ना' ही सुनी थी
तेरी 'ना' भी कोई अजूबा नही है
सच तो है ये कि मेरी जानेमन
तेरी ' हाँ ' हो जाने से डरते बहुत हें
चाहा जिसे भी दिलोजान से चाहा
बस इतनी सी गल्ती रही है हमारी
है चाहत कि तुमको भी चाहे बहुत
पर गलती दोह्राने से से डरते बहुत हैं
राहों मे मिलते हो तब पूछते हो
कैसे हो क्या हाल है आपका
कभी घर में फुरसत से बैठो
सुनाने को गम के फसाने बहुत है
जब भी नशेमन बनाया है कोई
गिरी आसमान से कई बिजलियाँ
Tuesday, March 2, 2010
या तो अब तुझ संग जीना है या फिर तुझ संग ही है मरना
अपनी खुशी के लिए किसीका दामन गम से क्या भरना
हमको तो आदत है यूं भी प्यासा जीते रहने की
दो घूँट पानी के लिए किसी कूए को जूठा क्या करना
ये होठो तक की प्यास नहीं दिल भी प्यासा मन भी प्यासा
ये प्यास किसी से बुझनी नही फिर दोष पानी पे क्या धरना
जीने मरने में फर्क नहीं मतलब तो तेरे साथ से है
या तो अब तुझ संग जीना है या फिर तुझ संग अब है मरना
Monday, March 1, 2010
ख़्वाब टूट जाने का गम यारा बहुत बुरा होता है
पूरा कर सकते ही नहीं वो ख़्वाब किसीको मत दिखला
ख़्वाब टूट जाने का गम यारा बहुत बुरा होता है
Sunday, February 28, 2010
अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होल़ी
कभी खेला करते थे होली जिद्द कर के हम सबसे
पर जब से हुआ बदरंग ये जीवन छुए नही रंग तबसे
यूं तो होली खेलने अब भी साथी घर आते हैं
पर जीवन हो बदरंग तो फिर रंग कहाँ कोई भाते हैं
तुमने जानू कह कर मेरी जान ये क्या कर डाला
रंगहीन जीवन में मेरे फिर से रंग भर डाला
फिरसे जगा दी सोई उमंगे तुमने बन हमजोली
मन में हुड्द्म्ग मचा रही है इच्छाओं की टोली
तुमने हम पर रंग डाल कर तो दी है शुरुआत
देखना अब किन किन रंगो की होगी तुम पर बरसात
अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होली
अब ना बचेगी तेरी चुनरिया अब ना बचेगी होली
डरते डरते चुटकी भर रंग इक दूजे को लगाना
मैं ना मानु इसको होली मै ठहरा दीवाना
बस माथे गुलाल का टीका ये भी हुई कोई होली
ना रंगो से रंगी चुनरिया ना ही भीगी चोली
अरे होल़ी में भी सीमाओं का क्या रखना अहसास
भूखा ही मरना ही तो फिर तोड़ना क्यों उपवास
खेलनी ही तो जम कर खेलो मस्ती भरी ये होल़ी
मातम की तरह ना मनाओ होल़ी मेरे हमजोली
होल़ी को होल़ी सा खेलो या रहने दो हमजोली
जितनी भी होनी थी होल़ी तुम संग होल़ी होल़ी