Saturday, March 6, 2010

इसके बाद शायद ना लिखु शायद ना लिख पाऊं

इसके बाद शायद ना लिखु शायद ना लिख पाऊं
सोचा चलते चलते आखिरी रचना लिखता जाउं
अपने अपने मापदण्ड खुद बना लिये है सबने
और उन्ही मापदण्डो पे औरो को लगते कसने
अच्छे बुरे की परिभाषा कुछ ऐसी सब ने बनायी
जो बात लगी अच्छी खुद को उसमे ही दिखी अच्छाई
अपनी गलती नज़र नही आती है उनको कोई
जब भी कुछ भी गल्त हुआ गलती दूजे मे पाई
किसी का सुख थोडा भी उनसे नही है देखा जाता
खुद तो सुख देना ही नही कोई और भी क्यों दे जाता
खुद्द का ढौग पाखण्ड भी उनको धर्म नज़र है आता
दूजा करे धर्म भी तो पाखण्डी है कहलाता
सिर्फ किताबी बातें पढ कर जीते सपनो की दुनिया मे
असली दुनिया मे क्या होता उससे नही कोई नाता
भूखे रहो प्यासे मर जाओ मन मारो बाबा बन जाओ
धर्मगुरूओ की मौज़ करो अपना'सब कुछ'उन पे लुटाओ
खुद तो त्यागो पैसा लेकिन उनका घर भरते जाओ
घर वालो को मारो पीटो उनके आगे शीश झुकाओ
बाबा घूमेगा कारो मे भले सडक पे तुम आ जाओ
पाई पाई बचा बचा के बाबा के चरणों मे चढाओ
तन मन धन सब उन गुरुओ को करते है वो अर्पण
जिन गुरुओ ने कभी नही देखा है मन का दर्पण
उनका ढोगी जीवन उनको सदचार नजर आता
जिन्दादिली से जीने वाला उनको जरा ना भाता
मेरे गीत गजल कविता सब उनको नही है भाते
क्योकि ये असली जीवन जीने की राह दिखाते
इसीलिये सोचा कि लिख कर उनका दिल क्यों दुखाऊ
माफ मुझे करना यारो जो अब कभी नजर ना आऊं

जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना

हसरत मार के जीना है तो तेरा साथ भी क्या करना
खुद भी परेशां क्या होना,तुझ को भी परेशां क्या करना

दामन फटा ही रहना है तो रफुगर कोई मिला ना मिला
जब चाक गरेबां सीना नहीं तो सुई या धागा क्या करना

बून्द बून्द को तरसा दे उस जल के स्त्रोत से क्या हासिल
वो नदिया हो या दरिया हो नलकूप हो या फिर हो झरना

कभी होंठ तलक भी भीगे नहीं तो दिल की प्यास बुझेगी कब
जब प्यासा मरना किस्मत है तो नदी किनारे क्या मरना

ना तो मन्जिल ही दिखती है ना राह नज़र आती है कोई
ऐसे नाकाम सफर मे यारा तुझको शामिल क्या करना

Friday, March 5, 2010

जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नहीं मै कह सकता

जो यार के काम ना आये कभी उसे यार नही मै कह सकता

जो प्यार किताबी रह जाए उस प्यार नही मै कह सकता

सह सकता हूँ दुःख गम या तकलीफ चाहे जितनी भी हो

बस खुशी मुझे कोई दे जाए तो थोड़ी भी नही सह सकता

जुबां पे कुछ और दिल में कुछ ये रीत है दुनिया वालो की

लो तुम ही सम्भालो ये दुनिया मै तो इसमें नही रह सकता

या तो खुल के जी लेने दो या फिर महफ़िल से जाने दो

महफिल की रस्में निभाने को मैं तो जीना नहीं कह सकता

मुझको तो उड़ने के लिए आकाश भी छोटा पड़ता है

पिंजरे के पंछी की तरह मैं दायरों में नही रह सकता

प्यार वफा चाहत अपनापन जो चाहो नाम दो तुम इसको

बात सिर्फ इतनी है उस बिन दो पल भी नही रह सकता

है हिम्मत तो आ हाथ थाम नही हिम्मत तो फिर घर में बैठ

बुजदिल के हाथ में हाथ किसीका ज्यादा देर नही रह सकता

मैं ज़िंदा हूँ विपरीत दिशा बहने की ताकत रखता हूँ

मुर्दा मछली सा पानी के संग साथ साथ नहीं बह सकता

Thursday, March 4, 2010

कौन है वो मेरा क्या है तुम ही कुछ बतलाओ

कौन है वो मेरा क्या है तुम ही कुछ बतलाओ
मेरा होकर भी मेरा नहीं क्या लगता है समझाओ

 दूर दूर रहते हैं लेकिन पास पास भी रहते हैं
 दिल की सारी बाते अक्सर इक दूजे से कहते हैं

 इक दूजे के काँधे पे सर रख कर हम रोये हैं
 इक दूजे का हाथ पकड़ अक्सर गलियों में खोये हैं

 दिल में समाये हैं हरदम बाहों में समाये कभी नहीं
 एक ही छत के नीचे अजनबी बन के भी हम  सोये हैं

एक ही  थाली ,एक कटोरी इक चम्मच से खाते हैं
इक दूजे के पोंछे आंसू जब भी हम रोयें हैं

घर का मालिक मै हूँ तो वो भी नहीं उसकी चेरी
तुम ही कहो कि कौन है वो और क्या लगती है मेरी

Wednesday, March 3, 2010

जला है यूं घर का मेरे तिनका तिनका

अंधेरो में रहने की आदत है हम को
उजालो में आने से डरते बहुत हैं
तेरे आने से घर हो सकता था रौशन
पर आँखे चोंधियाने से डरते बहुत हैं
जिसे भी दिखाए उसी ने कुरेदे
जख्मो की अपनी यही दास्ताँ है
बेवजह नही जो किसी मेहरबान को
जख्म अब दिखाने से डरते बहुत हैं
अभी तक भी सब की 'ना' ही सुनी थी
तेरी 'ना' भी कोई अजूबा नही है
सच तो है ये कि मेरी जानेमन
तेरी ' हाँ ' हो जाने से डरते बहुत हें
चाहा जिसे भी दिलोजान से चाहा
बस इतनी सी गल्ती रही है हमारी
है चाहत कि तुमको भी चाहे बहुत
पर गलती दोह्राने से से डरते बहुत हैं
राहों मे मिलते हो तब पूछते हो
कैसे हो क्या हाल है आपका
कभी घर में फुरसत से बैठो
सुनाने को गम के फसाने बहुत है
जब भी नशेमन बनाया है कोई
गिरी आसमान से कई बिजलियाँ
जला है यूँ  घर का मेरे तिनका तिनका
नया  घर बनाने  से डरते बहुत हैं

Tuesday, March 2, 2010

या तो अब तुझ संग जीना है या फिर तुझ संग ही है मरना

प्यार तेरा नफरत में बदल जाए वो काम नही करना
अपनी खुशी के लिए  किसीका दामन गम से क्या भरना

हमको तो आदत है यूं भी प्यासा जीते रहने  की
दो घूँट पानी के लिए किसी कूए को जूठा क्या करना

ये होठो तक की प्यास नहीं दिल भी प्यासा मन भी प्यासा
ये प्यास किसी से बुझनी नही फिर दोष पानी पे क्या धरना

जीने मरने में फर्क नहीं मतलब तो तेरे साथ से है
या तो अब तुझ संग जीना है या फिर तुझ संग अब  है मरना

Monday, March 1, 2010

ख़्वाब टूट जाने का गम यारा बहुत बुरा होता है

संभल संभल के अनजानी राहों में चलना होता है
लौट के वापिस आ पाना वरना मुश्किल सा  होता है

पूरा कर सकते ही नहीं वो ख़्वाब किसीको मत दिखला
ख़्वाब टूट जाने का गम यारा बहुत बुरा होता है

साथ निभाने की दिल में ना चाहत है ना ही हिम्मत
बात बात में हाथ पकड़ने से फिर यारा क्या होता है

वक्त मिला तो समझाऊँगा कौन फकीर कौन अमीर
नही चाहिए कुछ भी जिस को, असली  शहंशाह होता है

Sunday, February 28, 2010

अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होल़ी

कभी खेला करते थे होली जिद्द कर के हम सबसे

पर जब से हुआ बदरंग ये जीवन छुए नही रंग तबसे

यूं तो होली खेलने अब भी साथी घर आते हैं

पर जीवन हो बदरंग तो फिर रंग कहाँ कोई भाते हैं

तुमने जानू कह कर मेरी जान ये क्या कर डाला

रंगहीन जीवन में मेरे फिर से रंग भर डाला

फिरसे जगा दी सोई उमंगे तुमने बन हमजोली

मन में हुड्द्म्ग मचा रही है इच्छाओं की टोली

तुमने हम पर रंग डाल कर तो दी है शुरुआत

देखना अब किन किन रंगो की होगी तुम पर बरसात

अंग अंग जब तक ना भीगे तब तक होगी होली

अब ना बचेगी तेरी चुनरिया अब ना बचेगी होली

डरते डरते चुटकी भर रंग इक दूजे को लगाना

मैं ना मानु इसको होली मै ठहरा दीवाना

बस माथे गुलाल का टीका ये भी हुई कोई होली

ना रंगो से रंगी चुनरिया ना ही भीगी चोली

अरे होल़ी में भी सीमाओं का क्या रखना अहसास

भूखा ही मरना ही तो फिर तोड़ना क्यों उपवास

खेलनी ही तो जम कर खेलो मस्ती भरी ये होल़ी

मातम की तरह ना मनाओ होल़ी मेरे हमजोली

होल़ी को होल़ी सा खेलो या रहने दो हमजोली

जितनी भी होनी थी होल़ी तुम संग होल़ी होल़ी