Friday, December 20, 2013

ऐसे चुप न बैठो साथी कुछ तो बात करो




बहुत दिनों के बाद मिले हो कुछ तो हाल सुनाओ
 वैसा ही है या बदला है गाँव मुझे बतलाओ 
तेरे खेत में अब भी चिड़िया गाना गाती है क्या
और रहट  की आवाज़े अब भी आती है क्या
अब भी साहूकार तेरे दरवाज़े आता है क्या
उस पगली से अब भी तेरा कोई नाता है क्या
क्या  पेड़ के नीचे बैठे बाबा अब भी धूनी रमाते
बड़े बुजुर्ग क्या अब भी टोकते राहो में आते जाते
क्या अब भी तेरी अम्मी तुझ को लोरी गा के सुलाती
क्या अब भी याद गोरी की तुझको अक्सर  रात रुलाती
उस अमरूद के पेड़  पे अब कुछ फल भी आये है क्या
चोरी से तोड़ने वाले बच्चे  उधर नज़र आये क्या
अब भी वोट मांगने वाले घर घर आते हैं क्या
पक्की सड़क का वादा अब भी करके  जाते है क्या
 प्यार का करना अब भी गाँव में जुर्म है क्या कहलाता
फांसी ऐसे लोगो को क्या अब भी चढ़ाया जाता
अब भी स्कूल से टीचर गायब अक्सर  होते है क्या
अब भी टीचर से पिटकर बच्चे अक्सर रोते है क्या
अब भी गाँव में डाकिया  चिठ्ठी देर से लाता है क्या
अब भी चिठ्ठी पढने वाला कहीं और से आता है क्या
तेरे चुप्प रहने से मुझ को जाने क्यों डर लगता है
सब कुछ अब भी वैसा है ऐसा लगने लगता है
या फिर  अच्छी बाते अब तक बदल गयी है सारी
\और बुरी जितनी थी बाते वहीं रह गयी सारी
ऐसे चुप न बैठो साथी कुछ तो बात करो

Wednesday, December 11, 2013

तुम्ही कहो क्या प्यार तुम्हारा मुझ पर अत्याचार नही

सच मानो ये  ऐसा नहीं कि मुझको तुझसे प्यार नहीं
हाँ लेकिन ये सच है  कि बंधन मुझको स्वीकार नही

तुम को देखूँ तुमको चाहूं और तुम्ही से बात करूँ
पास ना  आये दूजा मै  पैदा ऐसे हालात करूँ

चाहूं तुमको ऐसे  जैसे   प्यासा चाहे पानी
पर पानी के सहारे केवल  कटे कहाँ जिंदगानी

प्यार तुम्हे करता हूँ जैसे खुदा को बन्दा चाहे 
खुद को  मिटा पर  कौन खुदा के पास है जाना चाहे

तेरी खुशी  का ध्यान रखूँ  है जिम्मेवारी मेरी
खुद को भी  खुश रखूं लेकिन ये मेरा अधिकार  नही

तुम्ही कहो क्या प्यार तुम्हारा मुझ पर अत्याचार नही
चाहो तो कह सकते हो अच्छे मेरे  संस्कार नही

जो चाहो कह लो लेकिन बंधन मुझ को स्वीकार नही





Tuesday, December 10, 2013

कभी मेरी याद आये तो आँखों में आंसू मत भरना

 कभी मेरी याद आये तो आँखों में आंसू  मत भरना
इक दिन तो इस दुनिया से सब को किनारा है करना

 खुद को तन्हा नही समझना साथ तेरा दूँगा  हरदम
मै  भी जोर लगाऊंगा जब  जोर  पड़ेगा तेरा कम
 
मेरी हर एक सीख तुझे जीवन में राह दिखायेगी
नहीं भटकने देगी तुझ को मंजिल तक पहुंचाएगी

नही सोचना अब क्या होगा जब  मै  आँखे  बंद करूँ
नींद कहीं ना खुल जाये फिर से ना तुमको तंग करूँ

कितना तुम ने सीखा है और कितना मैंने सिखाया
वक्त होगा आजमाने का नही अबतक जो आजमाया

अपनी आँखे खोल के चलना जब  मेरी  बंद हो जाए
नही भरोसा किसी का करना कोई कितना भी बहकाये

याद रहे कि इस  दुनिया  का कुछ दस्तूर है ऐसा
वक्त पे काम  आता है अपनी बुदधी अपना पैसा

गुस्सा तुनकपन   कड़वे बोल से बचना तू हर बार
काम जो निकले प्यार से ना निकाल पाये तलवार

हिम्मत रखना कभी ना खुद को तू करना कमजोर
गुजर जाएगा  इक दिन कोई बुरा जो आया दौर

कोई साथ मिले तो बेहतर वरना दिल पे ना लेना
वैसे भी यहाँ बिन मतलब नही साथ किसीने देना

नूर चेहरे पे चमक आँखों में रख हरदम मुस्काना
हाँ रो लेना कभी कभी जब चाहो मुझे रुलाना

प्यार व्यार की बाते मान के चलना है बेकार
तुझसे ज्यादा नही किसी ने करना तुझसे प्यार







Wednesday, November 13, 2013

अगर बात करने से ही बात बनती

अगर बात  करने से ही  बात  बनती
ना तेरी बिगड़ती न मेरी बिगड़ती

यहाँ सच बताने से बात है बिगड़ती
आईना दिखाने से है बात बिगड़ती

यहाँ  बात बनती है बाते बनाने से
लच्छेदार भाषा  गोल गोल घुमाने से

बस हाँ में हाँ ही मिलाओ  तो अच्छा
कोई झूठी  उम्मीद  जगाओ तो अच्छा

दो झूठी तसल्ली ना कुछ दे सको तो
करो झूठा वायदा ना कुछ कर सको तो

हो दिल  में गुंजाइश तो है बात बनती
करो पूरी फरमाइश तो है बात बनती

अगर बात करने से ही  बात  बनती
ना तेरी बिगड़ती न मेरी बिगड़ती

Thursday, October 10, 2013

मौत की नजरों में गुनह्गार हुए फिरते हैं

जिन्दा है पर जिन्दगी बेज़ार किये फिरते है
मौत से बस जिन्दगी उधार लिये फिरते  है

चुकता उधार करने से बेवजह ही  बचते रहे
खामख्वाह हम खुद को शर्मसार किये फिरते हैं

 कर्जदार की तरह साहुकार से बचते रहे
मौत की नजरों में  गुनह्गार हुए फिरते हैं

उधार की थी जिन्दगी फिजूल खर्च होती रही
बेवजह ही खुद को कर्जदार किये फिरते हैं

जब दिल मे गुंजाइश नही  कि प्यार मे कुछ खो सकें
किस लिये  फिर दुनिया भर से प्यार किये फिरते हैं

Friday, September 13, 2013

ड़रा कर मौत से मुझको तमाशा ज़िन्दगी खेले

चलो अच्छा हुआ फिर से अकेला कर दिया तुमने
मेरे विश्वास का कुछ तो सिला आखिर दिया तुमने

ए  मेरी ज़िन्दगी तू  ही बता  कहाँ रह गयी मेरी
किया जो भी मेरे घर में वो सब कुछ तो  किया तुमने

किया  है तार तार दामन  मिला जब भी तुम्हे मौक़ा
फटा दामन मेरा बतला  कभी भी क्या सिया तुमने

ड़रा कर मौत से मुझको तमाशा ज़िन्दगी खेले
ये मौक़ा तो किसीको भी नही अब तक दिया हमने





Tuesday, April 2, 2013

जिसे तुम प्यार कहते हो हम अत्याचार कहते हैं

ख़ुशी पाने क चक्कर में गवां दी हर ख़ुशी हमने
हम  कैसे लोग  हैं जो खुद को समझदार  कहते  हैं

किसी का साँस तक लेना भी जिसमे हो जाए  दूभर
क्यों  चाहने वाले इस चाहत को ही अब  प्यार कहते हैं

सिवा उनके  किसीका नाम जो लब पर मेरे आया
मुझे  दुनिया का   नम्बर वन वो गुनाहगार कहते हैं

 हिफाजत इस तरह सैयाद से की उसने गुलशन की
 किया बर्बाद  गुलशन यूँ जिसे अब  उजाड़  कहते हैं

ए मेरे चाहने वालो जरा सी मेरी भी सुन लो
जिसे तुम प्यार कहते हो हम अत्याचार कहते हैं