Thursday, March 6, 2008

जिससे भी सोची प्यार की वो ही खुदा हो गया

कुछ तो बता मेरे खुदा ऐसा क्या मुझसे हो गया
मेरी जमीं भी खो गयी और आसमाँ भी खो गया
 सोचा था घर छूटा तो क्या इतना बड़ा जहाँ तो है
 पर मेरे छोटे घर से भी छोटा ये जहाँ हो गया
 छूटा उसका साथ तो हर साथ कम पड़ने लगा
 मै भरी दुनिया के रहते कितना तन्हा हो गया
 शायद किसीके प्यार के काबिल नही रहे है हम
जिससे भी सोची प्यार की वो ही खुदा हो गया
 वो थी घर था हक से मिलती थी कभी रोटी हमें
 पर अब कटोरा भीख का थाली की जगह हो गया
 हसरत भरी नजरों से अब तो देखता हूँ रोटियाँ
 मै दरबदर भटकते भिखारी की निगाह हो गया
 जिस भी दिये से मैने घर मे रोशनी की सोच ली
वही चान्द सूरज बनके किसी आसमाँ का हो गया
 चान्द से बेहतर ही है , माटी का वो नन्हा दिया
 जिस दिये से घर किसी मुफलिस का रोशन हो गया
 कोई लाख सुन्दर हो,सलौना हो,किसीसे हमको क्या
 दिये से घर रोशन तो था, चान्द तुझ से क्या मिला

Wednesday, March 5, 2008

अब नया हम गीत लिखेंगें

अब नया हम गीत लिखेंगे तुझ संग मेरे मनमीत लिखेंगे रेत पर इन उंगलियों से नाम लिख के होगा क्या आती लहर मिट जायेगा ये प्यार का नामों निशाँ पत्थर के सीने पे अब हम लफ्ज-ए-प्रीत लिखेंगे अब नया हम गीत लिखेंगे……॥ प्यार तुम से था तुम्ही से है और तुम से ही रहेगा इस से ज्यादा खुद बता दिल और तुझसे क्या कहेगा अच्छा लगे तो ठीक वरना और कुछ नवनीत लिखेंगे अब नया हम गीत लिखेंगे…… जिन्दगी भर कोई बाजी हम ने कभी हारी नहीं तेरे दर से खाली हाथ लौटू मै कोई भिखारी नहीं हक है तेरे प्यार पे इसे लेके अपनी जीत लिखेंगे अब नया हम गीत लिखेगे……।

Monday, March 3, 2008

होंठों से, उसके गालों पे, मै कविता लिख के आ गया

इतिहास अपने आप को इक बार फिर दोहरा गया
वो मुस्कराये थे आदतन मुझे प्यार का भ्रम छा गया
 अपना समझने की उसे , जो भूल हम से हो गयी
उस भूल की सजा मैं जुर्म से भी ज्यादा पा गया
 किसका प्यार सच्चा किसका झूठा था अब क्या कहें
 जो भी मिला बस गरज़ तक रिश्ता हमसे निभा गया
 जो जान तक देने की , हमसे , था रोज़ उठवाता कसम
 हमने कुछ माँगा तो , गठरी , समेट के वो चला गया
 इक अपनी चीज के सिवा, नही कोई भी अपना यहाँ
 आया समझ हर रिश्ता जब, मुँह मोड़ता ही चला गया
 अच्छा था मुस्करा के यूँ, हम से ना वो मिलता कभी
 मुस्कराना उसका, दिल में, बेवजह ही प्यार जगा गया
 ऐसी कहानी प्यार की, तूने क्यों लिखी, ए मेरे खुदा
 अन्त जिस कहानी का, शुरू होने से पहले आ गया
 उम्मीद थी जिससे कि जख्मो पे लगायेगा मरहम
वो ही जख्मों पर मेरे, एक और जख्म लगा गया
 वो रोज कहते थे , कविता , हम पे भी, लिखो कोई
 होठो से, उसके गालो पे, मै कविता लिखके आ गया

Sunday, March 2, 2008

देखिये अब कौन रह पाता है अपने होश में

उसको खुदा ने बख्शा है , शबाब अभी अभी
साकी ने डाली है जाम में, शराब अभी अभी
 देखिये अब कौन रह पाता है अपने होश में
चेहरे से उसने उठाया है नकाब अभी अभी
 सब को पता चल जायेगा तू है कितनी बेवफा
 लिखी है तुझपे जिन्दगी इक किताब अभी अभी
 अब वो समझ जायेगा,क्या है प्यार,क्या वफा
 खुली है नींद, टूटा है उसका ख्वाब अभी अभी
 क्या पता क्या होगा हश्र, खिजां मे फूलों का
मुरझा रहे हैं बहार मे खिले गुलाब अभी अभी
 इनायतों से ज्यादा ही निकले हैं आपके सितम
 हम ने किया है पिछला सब हिसाब अभी अभी
 फूले नहीं समा रहें बाहों मे जिसको लेके आप
निकला था बाहों से मेरी वो जनाब अभी अभी
 हाथों में लेके नश्तर फिर सब दोस्त आ गये
जो लगी खबर मेरा जख्म इक है भरा अभी अभी