Friday, June 5, 2009

जिन्दगी का फलसफा क्या कीजियेगा जान कर

दोस्त बनाना ही तो काफी नही है दोस्तो
 दोस्त बन दोस्ती निभाना भी तो आना चाहिये

 लेने का हुनर तो सीखा आप ने है उम्र भर
कुछ देने का सलीका भी थोडा तो आना चाहिये

रिश्ते रखे आपने लेकिन जहाँ फायदा दिखा
 घाटे का रिश्ता क्या औरों को निभाना चाहिये

प्यार करना सीखना काफी नही है आजकल
 प्यार को परवान चढाना भी आना चाहिए

 यूँ गम छुपाने से कभी कम नहीं होते है गम
 ये सोच कि सोचा कि गम तुमको बताना चाहिये

 सलाह या अफसोस तक कायम रही तेरी दोस्ती
क्या रिश्ता यार को यार से यूँ ही निभाना चाहिये

कुछ भी गंवाना ना पडे और रिश्ता भी कायम रहे
ऐसा नही होता कभी तुम्हे समझ जाना चाहिये

धन लगा, मन लगा , या तन से दे कुर्बानियाँ
 रिश्ता बनाया है तो फिर रिश्ता निभाना चाहिये

सिर्फ बातों से ही बनती है कहाँ कोई बात अब
अपना कह्ते हो तो अपनों के काम आना चाहिये

 जिन्दगी का फलसफा क्या कीजियेगा जान कर
बन्दे को बस जिन्दादिली से जीना आना चाहिये

Thursday, June 4, 2009

हदों में रहके कभी प्यार हो नही सकता


हदों मे रहके तो व्यापार होते आयें हैं
 हदों में रहके कभी प्यार हो नही सकता

हदों में रहके तुम इन्कार कर तो सकते हो
 हदों में रहके पर इकरार हो नहीं सकता

तूँ जिस तरह से किनारे को पकडे बैठा है
 आज क्या तूँ कभी उस पार हो नहीं सकता

जो अपने यार की उम्मीद पे ना उतरे खरा
 वो रिश्तेदार ही होगा वो यार हो नही सकता

खोने और पाने का हिसाब जब लगे लगने
तो फिर वो दोस्ती होगी वो प्यार हो नहीं सकता

अगर पाना है मंजिल को तो घर को छोडना होगा
 कैदी दीवारों का मंजिल का हकदार हो नही सकता

निकलना दायरों से तेरा लाजिम है तूँ मेरी मान
 रह के दायरों मे तूँ मेरा प्यार हो नहीं सकता

 रिश्तों में हदें होती हैं नहीं प्यार में होती
 हदों में रिश्ते निभ सकते हैं प्यार हो नहीं सकता

खुले आकाश मे उडना अगर चाहत है तो सुन ले
हदों के पिंजरे मे रहके ये मुमकिन हो नहीं सकता

 निकल जाती है गाडी सामने से उस मुसाफिर के
 जो रहते वक्त गाडी मे सवार हो नहीं सकता

मेरे तन मन पे जब अधिकार तेरा , सिर्फ तेरा है
 तो क्यों तुझ पर यही अधिकार मेरा हो नहीं सकता

Wednesday, June 3, 2009

तुम लाख किसी के अपने बनो कोई लाख कहे तुमको अपना

कोई प्यार कहे या वफा कहे जो चाहे रंग दे रिश्तों को
हर रग के पीछे छुपी हुई सच में तो कोई जरूरत है

तुम लाख किसी के अपने बनो कोई लाख कहे तुमको अपना
 यहाँ अपना पराया कुछ भी नहीं जो कुछ है सिर्फ जरूरत है

 वो शख्स कहां रहता अपना चाहे कितना भी अपना हो
 जो पूरी नहीं कर पाता है जैसी जब हमें जरूरत है

दिन रात दुहाई देता है जिन रिश्तों में गहराई की
उतने गहरे रिश्ते हैं यहाँ बस जितनी गहरी जरूरत है

 रिश्ता वो लम्बा चलता है कोई गरज सी जिसमें बनी रहे
 ये गरज भी इतनी बुरी नहीं रिश्तों की ये पहली जरूरत है

कभी सोचा है तेरा मेरा रिश्ता अब तक क्यों कायम है
कुछ तेरी जरूरत है मुझ को कुछ मेरी तुझे जरूरत है

तुम्हे ठीक लगे तो आओ फिर नये रिश्ते का आगाज करें
 तुम मेरी जरूरत को समझो मै समझूँ क्या तेरी जरूरत है

Tuesday, June 2, 2009

अपनी ही खनक से जो टूटी थी तेरी चूड़ीयां

जितने भी थे इल्जाम सारे मेरे नाम हो गये
चलो इसी बहाने तेरे सारे काम हो गये

साथ छूटने का गम ,यूँ भी तो , कुछ कम ना था
 पर तूँ जुदा हुआ तो यूँ , हम बदनाम हो गये

लेकिन नहीं मुझ को रहा ,तुझ से कोई भी गिला
 जब ये सोचा ,साथ रह के, तुझ को मुझ से क्या मिला

 मैं ना कहता था, कि मेरे , आसुऔ को पोछ मत
ला आंचल हो गया, तो, इस में मेरी क्या खता

आयेगा वो वक्त भी जब सोचना होगा तुझे
मुझसे जुदा तूँ है भला ,या साथ मेरा था भला

 पहले तो हर इल्जाम , मेरे सर पे रख देता था तूँ
 मै नही हूँ साथ , तो ,किस की बतायेगा खता

अपनी ही खनक से जो टूटी थी तेरी चूड़ीयां
उनका भी इल्जाम मेरे सर पे रख के क्या मिला

Monday, June 1, 2009

रफू के साथ ही सुराख बढते जा रहें हैं

हादसे हद से बढते जा रहे हैं
 हम अपने कद में घटते जा रहे हैं

 रफू कैसे करुंगा मैं अपना चाक दामन
रफू के साथ ही सुराख बढते जा रहें हैं

 बहुत मुश्किल है अब तो नग्न होने से बचना
 बदन पे वस्त्र तो हर रोज घटते जा रहें हैं

ना जाने कौन मौसम में मुझे ज़ख्मी किया तुमने
कि सारे ज़ख्म ही नासूर बनते जा रहे हैं

 समय के साथ भर जाते ज़ख्म कोई गैर जो देता
 ये मेरे ज़ख्म तो हर रोज़ बढते जा रहे हैं

 दीया बुझाने का इल्ज़ाम ना ले सब्र कर थोड़ा
 हवांए तेज हैं दीये खुद ही बुझते जा रहे हैं

जब तक कोई मोड़ नहीं आता हर रिश्ता साथ निभायेगा

रिश्तों की हकीकत इतनी है,
और, इस से ज्यादा कुछ भी नहीं

कोई गर्ज़ रही, तो रिश्ता चला,
 नहीं पूरी हुई, तो टूट गया

तूं नाहक ढूंढता फिरता है,
 इन रिश्तों में गहराई को

 ये उस मटके से रीते हैं,
हो जिसका पैंदा फूट गया

तूं आज इसे ना मान, मगर
 ,इक रोज़ समझ आ जायेगा

जब तक कोई मोड़ नहीं आता
 हर रिश्ता साथ निभायेगा

 सब शाबासी देंगें तुझको
तूं जब तक बोझ उठायेगा

 पर राह में छोड़ के चल देंगें
जब बोझ तूं खुद बन जायेगा

 रिश्तों की ह्कीकत इतनी है
और इससे ज्यादा कुछ भी नहीं