Monday, September 29, 2008

ये कैसा तेरा प्यार प्रिय

रिम झिम रिम झिम पानी बरसा आया सवन मास प्रिय
 हरियाली छा गयी बुझी तप्ती धरती की प्यास प्रिय
 कभी तो पानी बरसा जम के प्ड र्ही कभी है फुहार प्रिय
 बादल ने ढक लिया सूर्य ना सकेए वो तुझे निहार प्रिय
 क्या देख रही तीज के झूले झूल रही उन सखियों को
 इन बाहों मे तुम झूलो तो मने तीज त्यौहार प्रिय
 वर्षा की बून्दो से देखो भीग गया अंग अंग अपना
 तन तो शीतल हुआ मगर अब मन मे लगे अंगार प्रिय
 तुम शरमाती सकुचाती सिमटी हुई गीले आंचल मे
 ये मौसम और दूरी इतनी ये कैसा है प्यार प्रिय
 नील गगन में कारे बाद्ल कोने कोने तक फैले है
देखो क्या रंग लाये तेरे गाये मेघ मल्हार प्रिय
 कैसी भी हो ॠतु सुहानी पलक झपकते बीतेगी
मै हूँ तुम हो मौसम है फिर किस का है इन्तजार प्रिय
 गोरा बदन और भीगा आंचल चेहरे पे वर्षा की बून्दे
 इस से बेहतर क्या होगा किसी युवती का श्रृंगार प्रिय
 माना कि तुम मुझ से खफा हो पर खुद पे कुछ रहम करो
 वर्षा ॠतु में मिट जाती है वर्षों की तकरार प्रिय