Saturday, July 11, 2009

रात का अन्धेरा ही निगल गया जिस शख्स को

अह्सास ही जब मर गया रिश्ते मे बाकी क्या बचा
 खोखला रिश्ता उम्र भर चलना क्या ना चलना क्या

 सारा सफर तन्हा कटा तो खत्म होते सफर मे
तूं बता हमसफर का मिलना क्या ना मिलना क्या

 रात का अन्धेरा ही निगल गया जिस शख्स को
 उसके लिये सू्रज सुबह निकलना ना निकलना क्या

कहने को डूबते को तिनके का सहारा है बहुत
दरअसल इतना  सहारा मिलना या  ना मिलना क्या

मरीज ए इश्क चल बसा तो हुस्न बेपर्दा हुआ
हुस्न का यूँ बेनकाब निकलना ना निकलना क्या

Tuesday, July 7, 2009

दम तोडते पोधे पे कलियों खिलना क्या ना खिलना क्या

तार तार हो चुका दामन तो उसका सिलना क्या
 फर्क दिल मे रख किसीका मिलना क्या ना मिलना क्या

 जब गिर गये इतना कि नरक तक भी छोटा पड गया
 बन्दे का उसके बाद संभलना क्या ना सभलना क्या

 इस तरह गुलशन कभी आबाद होते है भला
 दम तोडते पोधे पे कलियों खिलना क्या ना खिलना क्या

कब्र ही अन्जाम है गर हर खवाहिश का मेरी
फिर नयी खवाहिश का मन मे पलना क्या ना पलना क्या

 उठ गया है जामो मीना साकी भी जाने को है
महफिल मे अब नादाँ किसीका आना क्या निकलना क्या

 जब जानते हो चान्द धरती पर उतर सकता नही
 बच्चों की तरह चान्द पा लेने को फिर मचलना क्या

 कट गयी जब रात सारी रोशनी के बिन मेरी
 अब किसी दीये का यारा बुझना क्या और जलना क्या