Saturday, January 16, 2010

मन के दरवाजे पे दस्तक देना ही काफी नहीं

प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से
ना गरज दौलत से उसको ना मेरे घरबार से

 ना उसे मौसम की परवाह ना उसे दुनिया का डर
 वारी मै हिम्मत पे उसकी सदक़े उसके प्यार पे

 मन के दरवाजे पे दस्तक देना ही काफी नहीं
घर के दरवाजे पे दस्तक शामिल है उसके प्यार में

राम जाने प्यार उसका पहुंचे किस अंजाम पर
आगाज से ही तेज़ है जो रोकेट की रफ्तार से

 दिल से दिल के तार लगता है कुछ ऐसे जुड़ गये
 बाते हजार हो गयी बिन खोले मुंह मेरे यार के

 ना तडपता है न तड़पाता है वो इन्तजार में
जानता है वो मज़ा असली है वस्ल यार में

उसके आने से महक उठता चहक उठता है घर
 जुल्फों में उसकी कैद है मौसम सारे बहार के

 प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से
ढाई मिन्टो में पढ़ा दे सारे अक्षर प्यार के

शायद बुझती लौ की कोई आखरी चमक है
ये प्यार हम को हो चला है इक जवां दिलदार से

Thursday, January 14, 2010

बेवजह तो दिल धडकता है कहां यूं जोर से

जब से वो हमसे और उनसे हम मिलने लगे
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे

ता उम्र तो अकेले ही तय किया सारा सफर
है खत्म होने को सफर तो हमसफर मिलने लगे

बेवजह तो दिल धडकता है कहां यूं जोर से
दिल की गली से लगता है वो होके गुजरने लगे

यकीनन ही दिन बहारों के कुछ दूर अब नही रहे
उनके घर आने से सारे मौसम बदलने लगे

बेशक कोई नायाब तोहफा खुदा ने अब बख्शा हमें
गैर गुमसुम हो गये जो अपने थे जलने लगे

इतना हसीन हमसफर मिला भी तो किस मोड पर
जब खत्म सफर हो चला दुनिया से हम चलने लगे

Wednesday, January 13, 2010

चन्द सिक्को की खातिर अपना यार बदल गया पाला

चन्द सिक्को की खातिर अपना यार बदल गया पाला
जपने लगा है अब तो वो किसी और के नाम के माला

 माली और सैयाद मे जिस को फर्क नजर नही आता
 दाना चुगते चुगते परिन्दा जाल में वो फस जाता

कान्टे के सग लगा केचुआ मछली गर खायेगी हो
कितनी होशियार वो मछली आखिर फस जायेगी

ये दुनिया है यहां शिकारी अक्सर रूप छुपाता
लक्ष्मण रेखा पार हुई तो सिया हरण हो जाता

अपने रिश्ते तय करने का सब को है अधिकार
पर वो रिश्ता क्या रखना जो जानदार ना शानदार

Tuesday, January 12, 2010

इससे अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई

ज़ब से वो हम से और उनसे हम मिलने लगे
जिन्दगी के सारे मायने ही बदलने लगे

डर ये है कि फिर नया कोई जख्म ना मिले हमे
 उम्मीद ये कि शायद किस्मत अबसे बदलने लगे

 डर डर के राहे इश्क मे रखना था हर कदम मगर
 इक बार देखा फिर तो कदम खुद ब खुद चलने लगे

 ना कोई चाहत ना थी उम्मीद ही दिल मे कोई
 वो पहलु मे बैठे तो अरमां फिर से मचलने लगे

 अब ये भी घर मे यार का आने में आना है बता
 आये सुबह दो बातें की हुई सांझ तो चलने लगे

 इससे अच्छा था कि नश्तर ही चुभा जाता कोई
 मरहम लगाये बिन क्यों यार वापिस घर चलने लगे