Saturday, January 16, 2010

मन के दरवाजे पे दस्तक देना ही काफी नहीं

प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से
ना गरज दौलत से उसको ना मेरे घरबार से

 ना उसे मौसम की परवाह ना उसे दुनिया का डर
 वारी मै हिम्मत पे उसकी सदक़े उसके प्यार पे

 मन के दरवाजे पे दस्तक देना ही काफी नहीं
घर के दरवाजे पे दस्तक शामिल है उसके प्यार में

राम जाने प्यार उसका पहुंचे किस अंजाम पर
आगाज से ही तेज़ है जो रोकेट की रफ्तार से

 दिल से दिल के तार लगता है कुछ ऐसे जुड़ गये
 बाते हजार हो गयी बिन खोले मुंह मेरे यार के

 ना तडपता है न तड़पाता है वो इन्तजार में
जानता है वो मज़ा असली है वस्ल यार में

उसके आने से महक उठता चहक उठता है घर
 जुल्फों में उसकी कैद है मौसम सारे बहार के

 प्यार क्या होता है कोई सीखे मेरे यार से
ढाई मिन्टो में पढ़ा दे सारे अक्षर प्यार के

शायद बुझती लौ की कोई आखरी चमक है
ये प्यार हम को हो चला है इक जवां दिलदार से

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