Tuesday, January 27, 2009

तुम अगर चाहती तो हालात बदल सकते थे

तुम अगर चाहती तो हालात बदल सकते थे थाम गर लेती तो गिरने से संभल सकते थे मेरे चाहने से बदलना था नही इक पल भी तुम जो चाहती तो ये दिन रात बदल सकते थे माना था दिन की हकीकत का बदलना मुश्किल अपनी रातों के तो हम ख्वाब बदल सकते थे तुम तो ठहरी रही इक मील के पत्थर की तरह वरना हम राही कहां आगे निकल सकते थे मेरे किसी दर्द का अहसास तुझे होता अगर मेरे आंसू तेरी आँखों से निकल सकते थे अब किसी शै से बहलता नहीं दिल इक पल भी पर तेरे बहलाने से ता-उम्र बहल सकते थे मेरे लिए तो था ख़ुद को भी बदलना मुश्किल तुम जो चाहते तो ये कायनात बदल सकते थे तुम ने कोशिश ही नहीं की कि सहारा दो हमें वरना हम गिरने से पहले भी सम्भल सकते थे मेरी चाहत ना बदल पायी तेरी सोच तो क्या तेरे चाहत से तो मेरे जज्बात बदल सकते थे सच तो ये है की तुम्हे मेरी जरूरत ही ना थी वरना घर छोड़ के तुम कैसे निकल सकते थे चलो अच्छा हुआ तुम साथ नही हो वरना दिल के अरमान किसी वक्त मचल सकते थे तुम ने चाहा ही नही चाहने वालो की तरह चाहने वाले तो हर एक बात बदल सकते थे तुम अगर चाहती तो हालात बदल सकते थे

Monday, January 26, 2009

ना कहें बदकिस्मती तो क्या कहे तू ही बता

जिन्दगी के मायने हैं अब समझ आने लगे इक इक कर जब छोड़ के सब हमे जाने लगे देखता हूं आईना तो महसूस होता है मुझे सीने मे द्फन गम हैं चेहरे पे नजर आने लगे हमने जिन हाथों मे अक्सर फूल थमाये कभी वो हाथ अब सर पे मेरे पत्थर हैं बरसाने लगे देखा जब सीने मे नये जख्मो की जगह नहीं दोस्त कान्टो से पुराने जख्म सहलाने लगे किस किस्म के बीज थे जाने कैसी जमीन थी पोधो पे फूलो की जगह कान्टे नजर आने लगे ना कहें बदकिस्मती तो क्या कहे तू ही बता जब दोस्त सारे दुश्मनी कि रस्म निभाने लगें दूरी की बात और थी नजदीक जब गये कभी ऊन्चे कद वाले सभी बौने नजर आने लगे यूँ मानने को मान लेता हू तेरी हर बात मैं वैसे तो हर बात तेरी मुझ को बेमायने लगे अब हमारे बचने की उम्मीद बचती है कहां हमको बचाने वाले है खुद को बचाने मे लगे खेत मे तू ही बता कोई फसल बचती हैं कभी खेत की जब बाड़ खुद ही खेत को खाने लगे