Friday, February 29, 2008

लोग कह्ते है कवितायें ना लिखा कीजे

लोग कहते हैं कवितायें ना लिखा कीजे ।
 दर्द जब हद से गुजर जाये तो फिर क्या कीजे ॥
 वो जो कहते है मेरे गीत है बस दर्द भरे ।
 छाले मेरे दिल के कभी उनको दिखा ही दीजे
॥ जो सलाह देते है उम्मीद से जीने की सदा ।
 जहर जो मैने पिया थोड़ा उनको चखा ही दीजे
 फिर ना हसरत से कभी देखेगी किसी दुल्हन को
 मेहन्दी उन हाथों मे इक रोज लगा तो दीजे
 जो भी मिलता है कोई जख्म नया देता है
किन्हीं हाथों में मरहम,खुदा,अब तो थमा भी दीजे
 कोई देता है जख्म कोई छिड़कता है नमक
 रह गयी हैं क्या जमाने मे ये दो ही चीजे
 जख्म देखेंगे तो दिल उनका दहल जायेगा
मेरे जख्मों को किसी तरह छुपा भी दीजे

Thursday, February 28, 2008

उस रोज तुम खुद को कहोगे बेवफा

इस हाद्सों के शहर मे हो ही गया फिर हाद्सा
मैने भले रखा कदम एक एक संभलते हुये ॥
 सोचा ना था मिल जायेगी सरेराह हम को जिन्दगी
 हम तो गुजरे थे इधर से यूँ ही टहलते हुये ॥
 पेश ना करते कभी तेरे सामने शीशे का दिल
तेरे हाथों में गर देख लेते पत्थर उछलते हुये
 जिस दम पे तुम दम ठोंक ठुकराते रहे हरदम
मुझे आज देखेंगे हमदम तेरा दम वो निकलते हुये
 हाथों मे हाथ डाल तमन्ना थी तेरे संग चले
पर रह गये है देख खाली हाथ हम मलते हुये
 ये ना कह, तेरा मिलन, मुझसे कभी मुमकिन ना था
 देखा नहीं, क्या तुमने, धरती से गगन मिलते हुये॥
 चलो मै नही कह्ता,पर तुम खुद को कहोगी बेवफा
 जिस रोज शीशा देखोगी,सुबह आँख तुम मलते हुये

Wednesday, February 27, 2008

याद इतना भी कोई ना आये हमें

दिल की नाजुक रगें तक लगें टूटने
याद इतना भी क्यों कोई आये हमें
 चैन दिन मे नहीं नींद रातों से गुम
इस तरह से कोई क्यों सताये हमें
 वो लगायेंगे मरहम,तसल्ली तो दें
 फिर भले जख्म रोज देते जायें हमें
 प्यार उनसे किया जुर्म हमसे हुआ
फिर सजा से कोई क्या बचाये हमे
 प्यार ही दर्द है तो ये भी मंजूर है
 कोई दर्द-ए-दवा ना पिलाये हमें
 उनकी राहों से चुनने है काँटे अभी
कोई फूलों की राह ना दिखाये हमे
 ये है कैसी गजल जिसके हर लफ्ज में
 यार का अक्स ही, नजर आये हमें
 रोज सपनों में आने से क्या फायदा
 कोई सपना तो सचकर दिखायें हमें