Saturday, April 19, 2008

न जाने कौन शख्स की करता है दिल तलाश

दो चार कदम ही सही कुछ दूर संग तो चल
ता उम्र यूँ भी किसने दिया है किसीका साथ
 उंगली ही पकड इतना भी सहारा है बहुत
 कमबख्त कौन कहता है कि थाम मेरा हाथ
 दो चार घूंट ही सही जो दे सके वो दे
मै कहाँ कहता हूँ दे भर भर मुझे गिलास
 इस कदर इक उम्र से प्यासे रहें हैं हम
कूँए को पास पाके भी जगती नही अब प्यास
 प्यासे की प्यास कम रही या थी बहुत अधिक
 इस प्यास का कैसे कोई कर पायेगा अह्सास
 बस ओस की दो चार बून्दे जीभ पर रख कर
 प्यासे ने गर बुझा ली अपनी उम्र भर की प्यास
 हर इक देखकर भी नहीं देखता कमबख्त
 न जाने कौन शख्स की करता है दिल तलाश
सारे वफादारों से तो मिलवा चुका हूं मै
लगता है किसी बेवफा की है इसे तलाश

Thursday, April 17, 2008

जब मिलन होना नही तो मिलना क्या ना मिलना क्या

मिल के भी तेरा ना मिलना मिलना भी तो ऐसे मिलना
बन्द मुठी में से सूखी रेत के जैसा फिसलना
प्यासे की किस्मत तो देखो कितना बदनसीब है
 दो बून्द पी सकता नही और सामने है उसके झरना
 कोई इसे पूजा कहे इज्जत कहे या और कुछ \
इससे ज्यादा और क्या कोई करेगा ज्यादती
आरती की थाली में, तुम ने सजा के रोटियां
भूख से बेहाल शख्स की उतारी आरती
 रीति और रिवाज क्या धर्म और समाज क्या
 ये तो हमेशा रहें है कल क्या और आज क्या
 फिर भी सब होता रहा है क्या नही होता रहा है
करने वाले कर गये सब रोने वाला रोता रहा है
 मै तो इतना मानता हूँ कोई माने य न माने
 करने के भी सौ बहाने, ना करने के भी सौ बहाने
 फिर क्यों बहाने ढूँढना इसकी कोई वजह नही
साफ कह दो दिल मे कुछ मेरे लिये जगह नहीं
 जिस गाँव जाना ही नहीं उन राहों से निकलना क्या
जब मिलन होना नही तो मिलना क्या ना मिलना क्या

तुम तो नजरे छोड़ सीधे दिल मे ही उतर गयी

तुम में कुछ तो बात है जो तुझ मे दिल अटक गया
 अब तक कभी ना भटका जाने आज क्यों भटक गया
तेरे बारे में ही अब ये सोचता दिन रात है
तुम में कुछ तो बात है
 और भी देखे हैं सुन्दर और भी देखे जवाँ
 मेरी नजरो में मगर कोई खरा उतरा कहाँ
 पर तुम तो नजरे छोड़ सीधे दिल में ही उतर गयी
 शायद दिल ने दिल से कर ली सीधे कोई बात है
तुम में कुछ तो बात है
 तुम मिली क्या जिन्दगी का रुख ही जैसे मुड़ गया
 गम से नाता टूट के खुशियों से जाके जुड़ गया
 आँसुओं की अब कभी होती नही बरसात है
 तुम मे कुछ तो बात है

Wednesday, April 16, 2008

ना रूठ तेरे रूठने से हम तबाह हो जायेंगें

ना रूठ तेरे रूठने से दिन मेरे फिर जायेंगे
ये उजाले दिन के, अन्धेरो मे बदल जायेंगे
 फिर नज़र आयेगा ना अपना कोई भी जहान में
 दामन तो क्या नजरे बचा के सब निकलते जायेगे
 शायद गैरों से तसल्ली रहम के नाते मिले
अपने तो ले ले चुस्कियां तब और भी रुलायेंगे
 तेरे बिन मेरी जरुरत फिर न समझेगा कोई
 या यूँ कहो सब जानकर अन्जान बनते जायेगे
 व्यस्त होगे मस्त होगे अपने अपने घर में सब
 दूर रहने के बहाने सब को मिलते जायेगे
 बन के बेगैरत ही रखनी होगी सबसे दोस्ती
 देख मजबूरी मेरी सब और तनते जायेगे
 पेट भरना ही नही काफी है जीने के लिये
 हालाकि जीने के लिये हम पेट भरते जायेगे
 देखना तब अन्न तेरे बिन रंग दिखलाता है क्या
तन से हम जिन्दा रहेगे मन से मरते जायेगे
 यूँ जीने को तो बिन तेरे भी जिन्दा हम रह जायेंगे
पर तुझको खो के , जिन्दगी से हम बता क्या पायेगे
 ना रूठ तेरे रूठने से हम तबाह हो जायेगे

Tuesday, April 15, 2008

एक लबालब प्याले जैसे गम से भरे हुये है लोग

तेरे शहर मे कैसे कैसे भरे हुए हैं लोग
 इक चेहरे पे कई कई चेहरे धरे हुए हैं लोग
 आतंकित है आशंकित है सहमे है घबराये है
हर आहट पे चौंक उठते हैं कितना डरे हुये हैं लोग
 साँसों के आने जाने से बस तन को जिन्दा रखा है
वरना चेहरे बतलाते हैं कि मन से मरे हुए हैं लोग
 हंसने की कोशिश में अक्सर आँख छलक आती है
 इनकी एक लबालब प्याले जैसे गम से भरे हुए है लोग
 मन की बात कभी भी इनके होठों पर नही आ पाती
 गैरों से क्या अपनो से भी कितना डरे हुए है लोग
 इस शहर मे तेरी उलझन कोई क्या समझे क्या सुलझाये
 हर वक्त तो अपनी ही कोई उलझन से घिरे हुए हैं लोग
 जाने कौन है मन्जिल इनकी जाने कहाँ पहुँचना है
जब देखो तब सर पे अपने पाँव धरे हुए है लोग
 मन में कोई उत्साह नहीं जीने की कोई चाह नहीं
अपनी लाश को अपने ही कन्धो पे धरे हुए है लोग
 तेरे शहर का जीना आखिर मुझ को कैसे रास आये
यहाँ अन्दर से सब हुए ठूँठ बाहर से हरे हुए है लोग