Thursday, April 17, 2008

जब मिलन होना नही तो मिलना क्या ना मिलना क्या

मिल के भी तेरा ना मिलना मिलना भी तो ऐसे मिलना
बन्द मुठी में से सूखी रेत के जैसा फिसलना
प्यासे की किस्मत तो देखो कितना बदनसीब है
 दो बून्द पी सकता नही और सामने है उसके झरना
 कोई इसे पूजा कहे इज्जत कहे या और कुछ \
इससे ज्यादा और क्या कोई करेगा ज्यादती
आरती की थाली में, तुम ने सजा के रोटियां
भूख से बेहाल शख्स की उतारी आरती
 रीति और रिवाज क्या धर्म और समाज क्या
 ये तो हमेशा रहें है कल क्या और आज क्या
 फिर भी सब होता रहा है क्या नही होता रहा है
करने वाले कर गये सब रोने वाला रोता रहा है
 मै तो इतना मानता हूँ कोई माने य न माने
 करने के भी सौ बहाने, ना करने के भी सौ बहाने
 फिर क्यों बहाने ढूँढना इसकी कोई वजह नही
साफ कह दो दिल मे कुछ मेरे लिये जगह नहीं
 जिस गाँव जाना ही नहीं उन राहों से निकलना क्या
जब मिलन होना नही तो मिलना क्या ना मिलना क्या

1 comment:

Krishan lal "krishan" said...

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