Friday, May 29, 2009

तूं किनारे पर खडा रिश्तों पे ना दे फ़ैसला

अब तो अपनी जिंदगी से थक गया हूँ
या यूँ कहो, वृक्ष का फल हूँ, पक गया हूँ
फल लगा तो जिसने देखा उसने सोचा तोड़ डालें
चाहने वालों ने मेरे मुझपे ही पत्थर उछाले
किस कदर मुश्किल है बचना चाहने वालों से अपने
देख कर बचना नामुमकिन, खुद-ब-खुद टपक गया हूँ
अब तो अपनी जिंदगी से थक गया हूँ
यार का गम प्यार का गम दुनिया के व्यवहार का गम
किस को बतलाते कि सब से मिल के भी तन्हा रहे हम
सब से ही छुपाते रहे, गम में भी मुस्काते रहे
पर इक रुके आंसु सा बेबस आज तो छलक गया हूं
अब तो अपनी जिन्दगी से थक गया हूँ
रिश्ते खुदगरजी के निकले, नाते मनमरजी के निकले
प्यार, वफा, चाह्त, अपनापन शब्द ये सारे फर्ज़ी निकले
तूं किनारे पर खडा रिश्तों पे ना दे फ़ैसला
मुझ से पूछ, मैं तो इनकी आखिरी ह्द तक गया हूँ
अब तो अपनी जिन्दगी से थक गया हूँ

जा के "खुदा" वो बन बैठे इन्सान जो ना बन पाये कभी


कोई तो हुनर में माहिर है वरना ये कैसे मुमकिन है
 घर सब के जला के राख करे और उस पे आँच ना आये कभी

हम ने तो जब भी कोशिश की घर किसीका रोशन करने की
 चिराग जला, पर जलने से, हाथ अपने बचा ना पाये कभी

 वो ऐसी अदा से पोंछता है किसी आँख के बहते हुए आँसु
 अपने आंचल का कोना भी गल्ती से भीग ना जाये कभी

हम ने तो अपने आंचल से किसी आँख के आँसु जब पोंछे
आंचल गीला कर आए कभी आँखो में नमी भर लाए कभी

अपना तो इरादा इतना था कि इक "अच्छा" इन्सान बने
कई बार गिरे कई बार उठे पर पूरा संभल ना पाये कभी

कोई गुण बदला कि ना बदला ,चेहरा बदला ,चोला बदला
 और जा के "खुदा" वो बन बैठे इन्सान जो ना बन पाये कभी

Thursday, May 28, 2009

इस दुनिया में, हर रिश्ते की , होती बुनियाद जरूरत है


ना प्यार कोई, ना वफा कोई, ना चाहत है, ना अपनापन
 इस दुनिया में, हर रिश्ते की , होती बुनियाद जरूरत है
बुनियाद ही क्या, इन रिश्तों की, बहुमंजिल खड़ी इमारत में
हर छत को संभाले खड़ी हुई ,इक इक दीवार जरूरत है
हालात की कोख से जन्मे हैं, तेरे मेरे सारे रिश्ते
इस दुनिया मे हर रिश्ते को करती ईज़ाद जरूरत है
जो चाहे नाम दो रिश्तों को कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला
है बात असल मे इतनी ही सब का आधार जरूरत है
यहाँ तेरी जरूरत की खातिर कोई तुझसे नहीं रखता रिश्ता
रिश्तों को बनाने में सब की अपनी ही कोई जरूरत है    
बदले हालात , तो छितरेंगे , तेरे मेरे सारे रिश्ते
रिश्तो को जो बान्धे रखती है, वो डोरी सिर्फ जरूरत है
ता उम्र निभाना रिश्तों का, मजबूरी है, कोई प्यार नहीं
रिश्ते ढोने ही पड़ते हैं, जब लगे कि इन की जरूरत है
कभी  सोचा है तेरा मेरा रिश्ता अब तक क्यों कायम है
कुछ तेरी ज़रूरत है हुमको कुछ मेरी तुझे ज़रूरत है 

Wednesday, May 27, 2009

और भी हुस्न वाले है तू ही नहीं

तेरे दिल मे भी हैं तेरे कदमो मे भी
जाने क्यो हम नजर तुझ को आते नहीं
दूरी हर सुबह ओ शाम और भी बढ गयी
आप चलते नहीं हम ठहर पाते नहीं
याद तो हम तुम्हें करते हैं रात दिन
जाने क्यों पर तुम्हे हम बताते नही
आप कितना चले किस दिशा मे चले
हिसाब क्यों तुम खुद ही लगाते नहीं
दोस्त हैं कि कहे बिन समझते नही
हम है कि जो कुछ कह पाते नहीं
कहने को तो बहुत था मेरे पास भी
तुम समझते नहीं हम समझा पाते नहीं
तेरी हां से खुशी जब से होती नहीं
तेरी ना से हम तबसे घबराते नहीं
हैं और भी हुस्न वाले एक तू ही नही
ये कह के कीमत तेरी हम घटाते नही
तू भी तो ये समझ हम से चाहने वाले
रोज़ महफिल मे तेरी यूं आते नहीं

Tuesday, May 26, 2009

जा के "खुदा" वो बन बैठे इन्सान जो ना बन पाये कभी

कोई तो हुनर में माहिर है वरना ये कैसे मुमकिन है
घर सब के जला के राख करे और उस पे आँच ना आये कभी
हम ने तो जब भी कोशिश की घर किसीका रोशन करने की
चिराग जला, पर जलने से, हाथ अपने बचा ना पाये कभी
वो ऐसी अदा से पोंछता है किसी आँख के बहते हुए आँसु
 अपने आंचल का कोना भी गल्ती से भीग ना जाये कभी
हम ने तो अपने आंचल से किसी आँख के आँसु जब पोंछे
 आंचल गीला कर आए कभी आँखो में नमी भर लाए कभी
अपना तो इरादा इतना था कि इक "अच्छा" इन्सान बने
कई बार गिरे कई बार उठे पर पूरा संभल ना पाये कभी
 कोई गुण बदला कि ना बदला ,चेहरा बदला ,चोला बदला
 जा के "खुदा" वो बन बैठे इन्सान जो ना बन पाये कभी

Monday, May 25, 2009

रुख जिन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा

जीना भी हादसा, यहां, मरना भी हादसा
जो कुछ भी हो रहा यहाँ, सब कुछ है हादसा
इक हादसे से ही जन्म, तेरा मेरा हुआ
मर जायेंगें, जब और कोई होगा हादसा
तेरे मेरे वज़ूद की करता है बात क्या
दुनियाँ आई वज़ूद में, वो भी था हादसा
कोई हादसा हुआ तो तब जाकर पता चला
रुख़ ज़िन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा
कुछ पा लिया तो अपने को काबिल समझ लिया
कुछ खो गया तो दोषी मुकद्दर बता दिया
क्यों मानता नहीं कि हैं दोनों ही हादसा
खोना जो हादसा है तो पाना भी हादसा
जो कुछ भी हो रहा यहाँ, सब कुछ है हादसा
ना कोई वफादार है, ना कोई बेवफा
जो कुछ हुआ, हालात का था तय किया हुआ
निभानी पड़े वफा, तो सब वफा के हैं खुदा
सच तो है बेवफाई का मौका कहाँ मिला
मौका मिला, वफा का मुखौटा उतर गया
चल पड़ा फिर बेवफाईयों का सिलसिला
की उसने बेवफाई दिया नाम हादसा
रुख जिन्दगी का तय यहाँ करता है हादसा