अब तो अपनी जिंदगी से थक गया हूँ
या यूँ कहो, वृक्ष का फल हूँ, पक गया हूँ
फल लगा तो जिसने देखा उसने सोचा तोड़ डालें
चाहने वालों ने मेरे मुझपे ही पत्थर उछाले
किस कदर मुश्किल है बचना चाहने वालों से अपने
देख कर बचना नामुमकिन, खुद-ब-खुद टपक गया हूँ
अब तो अपनी जिंदगी से थक गया हूँ
यार का गम प्यार का गम दुनिया के व्यवहार का गम
किस को बतलाते कि सब से मिल के भी तन्हा रहे हम
सब से ही छुपाते रहे, गम में भी मुस्काते रहे
पर इक रुके आंसु सा बेबस आज तो छलक गया हूं
अब तो अपनी जिन्दगी से थक गया हूँ
रिश्ते खुदगरजी के निकले, नाते मनमरजी के निकले
प्यार, वफा, चाह्त, अपनापन शब्द ये सारे फर्ज़ी निकले
तूं किनारे पर खडा रिश्तों पे ना दे फ़ैसला
मुझ से पूछ, मैं तो इनकी आखिरी ह्द तक गया हूँ
अब तो अपनी जिन्दगी से थक गया हूँ