Friday, June 19, 2009

तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला

पास तेरे आके तुझ से दूर हो जाता हूँ मै
 क्या बताऊं किस कदर मजबूर हो जाता हूँ मै

मिल के भी तुझ से कभी मिल नहीं पाता हूँ  मै
 जब ये समझ आता नहीं फिर मिलने क्यों आता हूँ मैं

बात कर सकता हूँ पर हर बात कर सकता नहीं
जाहिर तुम पे मै कोई जज्बात कर सकता नहीं

पर दूर तुझसे रहके तेरे पास आ जाता हूँ मै
अपनी मनमर्जी का मालिक खुद को तब पाता हूं मै

 ना इजाजत चाहिये ना पूछनी मर्जी तेरी
 जी में जो आता है सब बेखौफ कर जाता हूँ मै

पास तेरे रहके तुझ को छूना तक मुमकिन नहीं
 पर दूर तुझ से रह तेरी बाहों में आ जाता हूँ मै

 दिलका हर इक दर्द तब तुझसे मै बांट पाता हूँ
मन की हर इक बात तब तुझ से कर जाता हूँ मैं

अठखेलियां करना भी तब तुझको बुरा लगता नहीं
 पास में और दूर में कितना फर्क पाता हूँ मैं

तूँ ही बता कि पास तेरे आके मुझ को क्या मिला
 दूर तुझसे रह के फिर भी कुछ तो पा जाता हूँ मै

 नजदीक रहके इस कदर रखनी क्या इतनी दूरींया
 कहने को साथी साथ है और तन्हा हो जाता हूँ मै

Thursday, June 18, 2009

तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नहीं

 बात क्या तुम से करूँ जब बात कुछ बननी नहीं
 मैने कुछ कहना नहीं और तुम ने कुछ सुननी नही

 क्यों गिला तुम से करूं कि जख्म तूने है दिये
ढूँढ कर लाये कोई वो सीना जो छलनी नही

साफ ना कह दो तो शायद मै मना लूँ अपना मन
 यूँ टालने से प्यार की कोई बात तो टलनी नहीं

यूँ बात ना बिगाड़ ये गुडे गुडडी का खेल नहीं
इक बार जो बिगडी तो किसीसे भी संभलनी नहीं

 किस लिये बैठा रहूं दर पे तेरे मै रात दिन
 हक भी जब मिलना नहीं भीख भी मिलनी नही

तुमको भी मालूम है और मुझ को भी ये है पता
 तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नही

Wednesday, June 17, 2009

रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे

धीरे धीरे आजकल रिश्ते सब मरने लगे
 हम भी औरो की तरह तरक्की अब करने लगे

 थाली किसीकी खाली है हुआ करे किसी को क्या
 आजकल तो सब के सब अपना घर भरने लगे

 अपनो बेगानो मे फर्क अब क्या रहा सोचो जरा
दोनो बचाने की जगह बेडा गरक करने लगे

 रात भर कोई सिसकिया लेता रहा लेता रहे
 सारे पडोसी रात भर खर्राटे तक भरने लगे

अपना भला बुरा लगे अब सोचने हम इस कदर
अपने हित की खातिर दुनिया का बुरा करने लगे

 मालिक का हो या गैर का बस खेत हरा चाहिये
आजकल सारे गधे चारा हरा चरने लगे

 बुद्धि मिली दिल खो गया पढ लिख के इतना ही हुआ
 तरक्की तो करने लगे पर सोच मे गिरने लगे