बात क्या तुम से करूँ जब बात कुछ बननी नहीं
मैने कुछ कहना नहीं और तुम ने कुछ सुननी नही
क्यों गिला तुम से करूं कि जख्म तूने है दिये
ढूँढ कर लाये कोई वो सीना जो छलनी नही
साफ ना कह दो तो शायद मै मना लूँ अपना मन
यूँ टालने से प्यार की कोई बात तो टलनी नहीं
यूँ बात ना बिगाड़ ये गुडे गुडडी का खेल नहीं
इक बार जो बिगडी तो किसीसे भी संभलनी नहीं
किस लिये बैठा रहूं दर पे तेरे मै रात दिन
हक भी जब मिलना नहीं भीख भी मिलनी नही
तुमको भी मालूम है और मुझ को भी ये है पता
तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नही
मैने कुछ कहना नहीं और तुम ने कुछ सुननी नही
क्यों गिला तुम से करूं कि जख्म तूने है दिये
ढूँढ कर लाये कोई वो सीना जो छलनी नही
साफ ना कह दो तो शायद मै मना लूँ अपना मन
यूँ टालने से प्यार की कोई बात तो टलनी नहीं
यूँ बात ना बिगाड़ ये गुडे गुडडी का खेल नहीं
इक बार जो बिगडी तो किसीसे भी संभलनी नहीं
किस लिये बैठा रहूं दर पे तेरे मै रात दिन
हक भी जब मिलना नहीं भीख भी मिलनी नही
तुमको भी मालूम है और मुझ को भी ये है पता
तूँ किसी को भी मिले मुझ को तो मिलनी नही
6 comments:
बात क्या तुम से करूँ जब बात कुछ बननी नहीं
मैने कुछ कहना नहीं और तुम ने कुछ सुननी नही
....आम भाषा मैं बड़ी सामान्य बात, कह दी आपने ! अनायास ही हँसी आ गई !
शुभकामनाएं !
सतीश
http://satish-saxena.blogspot.com/
बढ़िया है.
kya bat hai sandar,likhte rahen..
सतीश सक्सेना जी
आपने सही कहा बहुत ही सामान्य भाशा मे बहुत ही सामान्य बात कहता हूँ असामान्य बात मेरी समझ मे ही नही आती जैसे कि ये बात कि आप को हँसी क्यों आयी
समीर जी आप की जितनी तरीफ की जाये बहुत कम है आप वस्तव मे हिन्दी के लिये बहुत कुछ कर रहे है
लवली कुमारी जी
आपका स्वागत है मेरे इस ब्लाग पर
आप्का बहुत बहुत शुक्रिया रचना को पसन्द करने के लिये सच्मुच हृदय से निकली बात हृदय तक पहुन्च्ने का समर्थ्य रख्ती है
Post a Comment