Friday, May 1, 2009

कुछ ये भी

ना बिन मागे मोती मिले ना मांगे से भीख
 कोई नहीं कुछ देता खीचना पडता है ये सीख

देने को तैयार सब तू जबतक कुछ ना ले
तुझ को जब लेना पडा कोई कुछ नही दे

ना पहले से यार हैं ना प्यार ना रिश्तेदार
अब तो सब करने लगे प्यार मे भी व्यापार

 जिसको तुझसे गरज़ है वही है तेरा यार
 अपनी गर्ज तक तेरे है यार या रिश्तेदार

 आज नही तो कल तुझे होना है अहसास
 श्वान समान है जिन्दगी नही जो पैसा पास

अपनी शराफत खुद रहा बार बार वो तोल
पगला ये नही जानता रहा ना इसका मोल

 प्यार निभाने का चला  अब तो ढग अनोखा
 हींग लगे ना फिटकरी रंग सब चाहे चोखा

 झूठे दावे प्यार के मतलबी रिश्ते खास
सब के मन मतलब छुपा बाकी सब बकवास

 शोख है पर पक्का नहीं रंग वफा का यार
 पहली धूप मे उडन छू पहली धुवन बेकार

मिले तो  गले लगाये है  बिछुडे नमस्कार
इससे ज्यादा आवभगत अब ना रखे यार

Thursday, April 30, 2009

मौत मेरी हादसा या खु्दकशी हरगिज नही
कत्ल है बस आपको कातिल नजर आता नही
 इस तरह से यार मेरा कत्ल मेरा कर गया
 यू लगा जैसे मै अपनी आयी मौत मर गया
बेवजह सब लोग जाने मौत से डरते है क्यों
 मै तो अपनी जिन्दगी का चेहरा देख के डर गया
 सांसो के सिवा जिन्दगी ने जिन्दगी भर क्या दिया
 लो आज़ उसका ये भी कर्ज़ हमने वापिस कर दिया
 दूजो का दर्द बाँटने की ये भी क्या आदत हुई
इक इक कर झोली में अपनी दर्द ही दर्द भर लिया
कशमक्श मे यार को देखा तो हमने ये किया
खुद ही अपना सर खन्जर पे जाके धर दिया

Tuesday, April 28, 2009

ये सोच के झोली फैला ना बैठ पेड के तले
 पक के फ़ल इक रोज़ तेरी झोली मे गिर जायेगा

 उसको नही मालूम ये इस बाग का दस्तूर है
पकने से पहले कोई दूजा तोड के ले जायेगा

आज तो तू भीगने से डर रहा है जाने मन
 कल ये बारिशो का मौसम ही नहीं रह जायेगा

भीगने दे तन बदन और बुझने दे मन की अग्न
कौन जाने फिर ये सावन लौट के कब आयेगा

ना तू इस से पहले था ना इसके बाद होगा कभी
जो जी करे सो कर गुजर वरना बहुत पछतायेगा

Monday, April 27, 2009

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना

कितना मु्श्किल है उजालो को बचाये रखना
 दुश्मनी रोज अन्धेरों से बनाये रखना

 सैकडों दीप भी कुछ कम ही नजर आते है
 आन्धियों मे पडे जब दीप जलाये रखना

 भले नाकाम सही फिर ये कोशिश थी मेरी
 तेरे साये को अन्धेरो से बचाये रखना

 रिश्तों को तोड के चल देना बडी बात नही
 है बडी बात तो रिश्तो को निभाये रखना

 इतना आसा भी नही जितना समझ बैठे थे हम
 इश्क की आग को इस दिल मे दबाये रखना

गैरों से राज़ छुपा कर ना समझ राज है ये
लाजिमी ये भी था अपनो से छुपाये रखना

उन्हें तुफाँ से गुजारिश नही करनी पडती
 सीख लेते है जो पतवार चलाये रखना

आग जगल की जब हर पेड तलक आ पंहुचे
तब घरोन्दो का नामुमकिन है बचाये रखना

कागजी फूलो पे तितली तो बुला लीजे मगर
 नकली खुश्बु से नामुमकिन है रिझाये रखना

रेत से महल बनाना नहीं इतना मुशकिल
जितना मुश्किल है बने महल बचाये रखना

ना  ही समझो तो है बेहतर कि ये रिश्ते क्या है
 मुश्किल हो जायेगा रिश्तो का बनाये रखना

Sunday, April 26, 2009

लम्हो की क्या कद्र थी जाकर पता ये तब चला

जिन्दगी मे जब सही कोई फैसला हमने लिया
 वक्त ने हर बार हमको गल्त साबित कर दिया

लम्हो की क्या कद्र थी जाकर पता ये तब चला
 वक्त ने हिसाब जब एक एक लम्हे का लिया

क्या पता कब वक्त होता है किसी पे मेहरबाँ
 वक्त ने जब भी लिया हम से तो बदला ही लिया

 हम तो नासमझी मे यारा भूल कोई कर गये
खुद से भी तो पूछ लो तुमने आखिर क्या किया

 जब भी चाहा जिन्दगी को खूबसूरत मोड़ दे
हालात ने इस जिन्दगी को और बदरग कर दिया

लम्हा लम्हा करके आखिर काट ही दी जिन्दगी
आखिरी लम्हो मे क्या सोचे कि आखिर क्या किया