Saturday, May 10, 2008

मत करो नाकाम कोशिश ये मकाँ बचना नहीं

सोचा नही तो सोचो, उस देश का क्या हो
जिस देश का हर शख्स उसे लूट रहा हो
 जिस नाव के सवार उस में कर रहें हो छेद
 उस पार तक वो नाव फिर क्या खाक जायेगी
 मझधार तक पहुंचना भी किस्मत की बात है
साहिल के आस पास ही वो डूब जायेगी
 टांग लो तस्वीरें जितनी तुम हर इक दीवार पर
 यूँ छुपाने से दरारें और बढती जायेंगी
 दीवार की हर ईंट तक जा पहुँची है हर इक दरार
ये दरारें वो नही जो भरने से भर जायेंगी
 इन दरारों से हुई जर्ज़र दीवारें देखिए
 और कितने रोज़ तक, खुद को खड़ा रख पायेंगीं
 मत करो नाकाम कोशिश ये मकाँ बचना नहीं
 गिरती दीवारों पे छत भी कब तलक टिक पायेंगी
 गिरने दो या खुद गिरा दो ऐसे घर की हर दीवार
 अब नये मकान की बुनियाद रखी जायेगी
जब नये दरवाजे होंगें और नई नई खिडकियाँ
 तब कहीँ जाकर इस घर में रोशनी आ पायेगी

Friday, May 9, 2008

इस सच को ही सच मानते हो तो इससे बडा कोई झूठ नहीं

सब कह्ते हैं सच बोलो सच अन्त में जीत ही जाता है
मै कह्ता हूँ मत बोलो सच सुनना किस को भाता है
 सच क्या है इक नंगापन है नंगापन किसे सुहाता है
 नंगेपन को ढकने का हुनर बचपन से सिखाया जाता है
 सीधे सच्चे इन्सानों की यहाँ कोई बात नहीं सुनता
बातें सब सुनते है उसकी जिसे बात बनाना आता है
 गलत सही, यहाँ कुछ भी नहीं, जो ताकतवर है वही सही
 या शब्दजाल बुनकर जिसको, सही साबित होना आता है
 सत्यम बुर्यात प्रियम बुर्यात कैसे हो सकता है संभव
 सुना है सच कडवा होता है, कडवापन किसको भाता है
 कभी सोचा है कि सच को प्रिय किस तरह बनाया जाता है
 कुछ सच को छुपाया जाता है कुछ झूठ मिलाया जाता है
 इस सच को ही सच मानते हो तो इससे बडा कोई झूठ नहीं
 इस झूठे सच का पहला घूंट हमें घर में पिलाया जाता है

Thursday, May 8, 2008

अब तुम ही कहो, हम को, किस शख्स ने मारा है

जब तुम भी हमारे हो, और वो भी हमारा है 
तब तुम ही कहो, हम को, किस शख्स ने मारा है
शीशा ही नहीं टूटा, अक्स भी टूटा है
पत्थर किसी अपने ने, बेरहमी से मारा है
  उस पार जो पहुंचे है, किस्मत के सिकन्दर हैं
इस पार जो रह गये हैं, वो भी कुछ बेहतर हैं
उस शख्स की हालत का, अन्दाजा करो यारों
माझी ने जिसे लाकर, मझधार उतारा है
  उसका तो दिखावा था ,हम सच ही समझ बैठे
कश्ती भी हमारी है , माझी भी हमारा है 
कोई खोट तेरे दिल का, चेहरे से ना पढ़ पाया
तुमने अपना चेहरा, किस कदर संवारा है
  क्या लिखा किताबों में ,उसकी तो तुम जानो
मैं तो वो कहता हूँ ,जो मैने गुजारा है
जो जख्म हैं सीने पे ,दुश्मन की इनायत हैं
पर पीठ में ये खंजर, अपनो ने उतारा है
  अब तुम ही कहो हमको किस शख्स ने मारा है

Tuesday, May 6, 2008

हाँ लेकिन ये सच है तुम से प्यार बहुत करता हूँ

नहीं कहा है, नहीं कहुगा, मैं तुम पे मरता हूँ
हाँ लेकिन ये सच है तुम से प्यार बहुत करता हूँ
 तेरे नयना अच्छे लगते, तेरा चेहरा मुझ को भाता
 तुझ से बात करूँ तो, मन को अजब सकूँ सा है मिल जाता
 जब भी दिल में दर्द उठा है, बस तेरी ही याद आई
खुदा की बारी भी ऐसे में, अकसर तेरे बाद आई
 जी करता है, सब को छोड़ कर, पास तेरे मै आ जाऊँ
या फिर पंख लगा, तेरे संग, दूर कहीं मै उड़ जाऊँ
 पर ये सब कैसे कर पाऊँ सैयाद से डरता हूँ
 हाँ फिर भी ये सच है तुम से प्यार बहुत करता हूँ
 सूरज की गर्मी का मारा ढूंढे हर कोई छाया
प्यास लगे तो कौन नही है पास कुँए के आया
 मै भी तुम तक आ पहुंचा चाहे तो प्यास बुझा दो
 या फिर तुम भी निष्ठुर होकर प्यासा ही लौटा दो
तुम चाहो तो हर सकती हो मेरे मन की पीर
चिड़ी  चोंच भर ले गयी नदी न घट्यो नीर
 जितना तुम मुझ को भाती हो, काश मै तुम को भाता
 तो फिर इस जग में जीने का, अर्थ मुझे मिल जाता
 बस, इतनी सी चाहत है, कहने से डरता हूँ डरता हूँ
 क्योंकि, मै तुम से प्यार बहुत करता हूँ

शीशे के घरों में रहते हो और पत्थर फैंकते हो मुझ पर

जब दिल मे प्यार बचा ही नही  इक बार में रिश्ता खत्म करो
 बेजान हुए रिश्तों की लाश को मुझसे नहीं ढोया जाता
 जब मन में कोई खुशी ना हो होंठों से हंस कर क्या हासिल
जब दिल में कोई दर्द ना हो आँखो से नही रोया जाता
 तकलीफ मुझे पल पल दे कर तुमने चाहा हर खुशी मिले
 अजी आम अगर खाने हों तो बबूल नहीं बोया जाता
 इक इक रिश्ते के मरने पर इतना रोया कि मत पूछो
 नही आँख मे आँसू बचा कोई अब मुझसे नहीं रोया जाता
 है कौन सा दामन जिसमें कभी दाग कोई भी लगा ना हो
हर दाग के चक्कर में अपना दामन तो नहीं खोया जाता
 और ये कौन तरीका ढूंढा है दामन से दाग छुडाने का
दागी दामन को गलियों में सरे आम नहीं धोया जाता
 लूट हजारो और लाखों तू जो सैकड़ों बांटता फिरता है
 यूँ पुण्य नहीं हासिल होता यूँ पाप नहीं धोया जाता
 शीशे के घरों में रह्ते हो और पत्थर फैंकते हो मुझ पर
 शुक्र करो मुझ से अपना कभी होश नहीं खोया जाता
 उतना ना सही कुछ कम ही सही है अब भी माल तेरे घर में
ऐसे में खुले दरवाजे रख बेफिक्र नहीं सोया जाता

Monday, May 5, 2008

चल छोड़ किनारे को साथी आ आज बीच मझधार चले

चल छोड़ किनारे को साथी, आ आज बीच मझधार चलें
 इस पार तो सब कुछ देख लिया अब देखने कुछ उस पार चलें
 मत सोच कहेगी क्या दुनिया, दुनिया तो कहती रहती है
जो सहज लगे सो जीता जा जैसे कोई नदिया बहती है
 क्या सही ग़लत क्या पाप पुण्य सारी इस पार की बातें हैं
 हर रोज़ जो बद्ले परिभाषा सच मान बेकार की बातें हैं
 आ, छोड़ बेकार की बातों को, करने सपने साकार चलें
चल छोड़ किनारे………
 हर काम किया पर डर डर के, तूं जितना जिया सब मर मर के,
कोई खुशी अगर तूने पाई दुनिया को जो रास नहीं आई
पाई तो खुशी पर डर डर के या मन में ग्लानि को भर के
 उस खुशी से मिलती कहाँ खुशी जो मन में ग्लानि भर जाये
वो कश्ती पार नहीं जाती जिस कश्ती मे पानी भर जाये
 तूँ चेहरे से मुस्काता रहा पर मन मे करता रहा रुदन
अब छोड़ दे ये नकली जीवन और खोल दे मन का हर बंधन
 तन मन दोनों पुलकित हो जहाँ आ ढूंढने वो संसार चले
 कर हिम्मत आ उस पार चलें आ आज बीच मझधार चलें
इस पार तो सब कुछ देख लिया अब देखने कुछ उस पार चलें