शीशा ही नही टूटा, अक्स भी टूटा है । पत्थर किसी अपने ने बेरहमी से मारा है॥ जो जख्म है सीने पे दुश्मन ने लगाये हैं। पर पीठ में ये खंजर अपनो ने उतारा है।
Friday, January 25, 2008
हदों मे रह के कभी प्यार हो नही सकता
हदों मे रहके तो व्यापार होते आयें हैं
हदों में रहके कभी प्यार हो नही सकता
हदों में रहके तुम इन्कार कर तो सकते हो
हदों में रहके पर इकरार हो नहीं सकता
तूँ जिस तरह से किनारे को पकडे बैठा है
आज क्या तूँ कभी उस पार हो नहीं सकता
जो अपने यार की उम्मीद पे ना उतरे खरा
वो रिश्तेदार ही होगा वो यार हो नही सकता
खोने और पाने का हिसाब जब लगे लगने
तो फिर वो दोस्ती होगी वो प्यार हो नहीं सकता
अगर पाना है मंजिल को तो घर को छोडना होगा
कैदी दीवारों का मंजिल का हकदार हो नही सकता
निकलना दायरों से तेरा लाजिम है तूँ मेरी मान
रह के दायरों मे तूँ मेरा प्यार हो नहीं सकता
रिश्तों में हदें होती हैं नहीं प्यार में होती
हदों में रिश्ते निभ सकते हैं प्यार हो नहीं सकता
खुले आकाश मे उडना अगर चाहत है तो सुन ले
हदों के पिंजरे मे रहके ये मुमकिन हो नहीं सकता
निकल जाती है गाडी सामने से उस मुसाफिर के
जो रहते वक्त गाडी मे सवार हो नहीं सकता
मेरे तन मन पे तो अधिकार तेरा , सिर्फ तेरा है
भले तुझ पर यही अधिकार मेरा हो नहीं सकता
प्यार जब हद से गुजर जाये
प्यार में दर्द का अहसास ही कब होता है
प्यार जब आधा अधूरा हो ये तब होता है
दर्द जब हद में रहे तब ये रूलाता है बहुत
दर्द जब हद से गुजर जाये दवा होता है
प्यार तड़पाता,रुलाता है,सताता है बहुत
लेकिन वो प्यार जो दायरों मे घिरा होता है
प्यार जब हद से गुजर जाये तो फिर क्या कहना
प्यार में सारे जमाने का मजा होता है
प्यार में रोने रूलाने का चलन है तब तक
जब तक ये अपनी जंजीरो मे बंधा होता है
अपने संस्कारो की जंजीरे जरा तोड़ के देख
अपने दायरों से निकल अहम जरा छोड़ के देख
प्यार करते हो तो सरेआम कहो करते हैं
यार से साफ कहो तुम पे बहुत मरते हैं
अपना कोई भी अहम तूँ आड़े ना आने दे कभी
प्यार को तूँ रूठ के ना दूर जाने दे कभी
खा कसम डर या वहम दिल मे ना तेरे आयेगा
तूँ कदम आगे बढा पीछे जहाँ ह्ट जायेगा
हाँ हो सकता है कि कुछ चर्चे रहें दो चार दिन
तूँ ही बता इससे ज्यादा और क्या हो जायेगा
थोडी ताकत थोड़ी सी हिम्मत जुटानी है तुम्हें
ये प्यार तेरी सारी दुनियां ही हसीं कर जायेगा
वो कहेगा कब कहेगा इसका ना इंतजार कर
तुम कहोगे पहले तो इसमें तेरा क्या जायेगा
तेरे दामन के पकड़ने में ही दिखती ढील है
वरना क्या हिम्मत जो वो दामन छुड़ा ले जायेगा
Thursday, January 24, 2008
तब जा के गुजारा होता है
जो भी चाहे तूँ मंजिल चुन जो भी चाहे तूँ सपने बुन
जो ठीक लगे सो करता जा ना इसकी सुन ना उसकी सुन
सब कुछ हासिल हो सकता है गर खुद मे तूँ पैदा कर ले
मंजिल को पाने की धुन और राहो पे चलने का गुण
ना कामयाब इन्सान सदा किस्मत का ही रोना रोता है
कहता है मिलता है वही किस्मत में जो लिखा होता है
नहीं सोचता आम मिले कैसे जब पेड बबूल के बोता है
अपने कर्मो का फल ना मिले ऐसा तो कभी नहीं होता है
केवल इच्छा है पाने की नहीं हिम्मत दाँव लगाने की
हाँ ऐसा शख्स तो हर बाजी पहले से ही हारा होता है
चाहत रखने भर से ही मंजिल कहाँ किसे मिलती
मंजिल के लिये तो चलते रहो तब जा के गुजारा होता है
Subscribe to:
Posts (Atom)