सूर्य की पहली किरन सी मन की धरा पे तुम पडी
तुम ही अब मेरी धरा अब तुम ही आसमान हो
सोच भी तुम समझ भी तुम तुम ही मेरी कल्पना
अब तुम ही मेरे पंख हो तुम ही मेरी उडान हो
ना गया मन्दिर कभी ना ही की पूजा कभी
अब तुम ही हो गीता मेरी तुम ही मेरी कुरान हो
तुम दिया हो आरती का तुम ही थाली आरती की
तुम ही पूजा हो मेरी तुम ही मेरी भगवान हो
ना सिखाए अब मुझे कोई धर्म क्या अधर्म क्या
तुम ही मेरा धर्म हो तुम ही मेरा ईमान हो
मुझसे डूबते को तिनके का सहारा भी हो तुम
नदिया तुम कश्ती तुम और किनारा भी हो तुम
अब खुदा से भी नही रुकना मेरा तुझसे मिलन
पार भी तुझ से मिलन मझधार भी तुझसे मिलन
भोर भी तुम सुबह भी तुम शाम भी तुम रात भी तुम
दिन की हकीकत हो तुम रातो का हो खवाब तुम
कभी सवाल बन के मेरे सामने खडी हो तुम
कभी हर इक सवाल का दिखती हो जवाब तुम
अब तेरे ख्यालों में दिन रात यूँ रहता हूँ गुम
यहाँ वहाँ इधर उधर देंखू जिधर उधर हो तुम
लोग कहते हैं कि हर इक शै में है खुदा बसा
गल्त कह्ते है हर शै में मुझ को तो दिखती हो तुम
तुम ही मन्जिल तुम ही साथी तुम ही मेरा रास्ता
अब छोडना न बीच राह तुमको खुदा का वास्ता
जिन्दगी से तुम गयी तो साँस भी रुक जायेगी
ना भी रुकी तो जिन्दगी इक जिन्दा लाश हो जायेगी
हाँ मिल गया कभी खुदा तो उससे पूँछूगा बता
कि उसने मेरे साथ आखिर क्यों ये अन्याय किया
तुमको बनाया मेरा सब कुछ और तुम्हें मेरी नही
तुम ही अब मेरी धरा अब तुम ही आसमान हो
सोच भी तुम समझ भी तुम तुम ही मेरी कल्पना
अब तुम ही मेरे पंख हो तुम ही मेरी उडान हो
ना गया मन्दिर कभी ना ही की पूजा कभी
अब तुम ही हो गीता मेरी तुम ही मेरी कुरान हो
तुम दिया हो आरती का तुम ही थाली आरती की
तुम ही पूजा हो मेरी तुम ही मेरी भगवान हो
ना सिखाए अब मुझे कोई धर्म क्या अधर्म क्या
तुम ही मेरा धर्म हो तुम ही मेरा ईमान हो
मुझसे डूबते को तिनके का सहारा भी हो तुम
नदिया तुम कश्ती तुम और किनारा भी हो तुम
अब खुदा से भी नही रुकना मेरा तुझसे मिलन
पार भी तुझ से मिलन मझधार भी तुझसे मिलन
भोर भी तुम सुबह भी तुम शाम भी तुम रात भी तुम
दिन की हकीकत हो तुम रातो का हो खवाब तुम
कभी सवाल बन के मेरे सामने खडी हो तुम
कभी हर इक सवाल का दिखती हो जवाब तुम
अब तेरे ख्यालों में दिन रात यूँ रहता हूँ गुम
यहाँ वहाँ इधर उधर देंखू जिधर उधर हो तुम
लोग कहते हैं कि हर इक शै में है खुदा बसा
गल्त कह्ते है हर शै में मुझ को तो दिखती हो तुम
तुम ही मन्जिल तुम ही साथी तुम ही मेरा रास्ता
अब छोडना न बीच राह तुमको खुदा का वास्ता
जिन्दगी से तुम गयी तो साँस भी रुक जायेगी
ना भी रुकी तो जिन्दगी इक जिन्दा लाश हो जायेगी
हाँ मिल गया कभी खुदा तो उससे पूँछूगा बता
कि उसने मेरे साथ आखिर क्यों ये अन्याय किया
तुमको बनाया मेरा सब कुछ और तुम्हें मेरी नही