Wednesday, April 9, 2008

अब खुदा से भी नही रुकना मेरा तुझसे मिलन

सूर्य की पहली किरन सी मन की धरा पे तुम पडी
तुम ही अब मेरी धरा अब तुम ही आसमान हो
सोच भी तुम समझ भी तुम तुम ही मेरी कल्पना
अब तुम ही मेरे पंख हो तुम ही मेरी उडान हो
 ना गया मन्दिर कभी ना ही की पूजा कभी
 अब तुम ही हो गीता मेरी तुम ही मेरी कुरान हो
 तुम दिया हो आरती का तुम ही थाली आरती की
 तुम ही पूजा हो मेरी तुम ही मेरी भगवान हो
ना सिखाए अब मुझे कोई धर्म क्या अधर्म क्या
 तुम ही मेरा धर्म हो तुम ही मेरा ईमान हो
 मुझसे डूबते को तिनके का सहारा भी हो तुम
नदिया तुम कश्ती तुम और किनारा भी हो तुम
 अब खुदा से भी नही रुकना मेरा तुझसे मिलन
 पार भी तुझ से मिलन मझधार भी तुझसे मिलन
 भोर भी तुम सुबह भी तुम शाम भी तुम रात भी तुम
 दिन की हकीकत हो तुम रातो का हो खवाब तुम
कभी सवाल बन के मेरे सामने खडी हो तुम
 कभी हर इक सवाल का दिखती हो जवाब तुम
 अब तेरे ख्यालों में दिन रात यूँ रहता हूँ गुम
यहाँ वहाँ इधर उधर देंखू जिधर उधर हो तुम
 लोग कहते हैं कि हर इक शै में है खुदा बसा
गल्त कह्ते है हर शै में मुझ को तो दिखती हो तुम
 तुम ही मन्जिल तुम ही साथी तुम ही मेरा रास्ता
अब छोडना न बीच राह तुमको खुदा का वास्ता
 जिन्दगी से तुम गयी तो साँस भी रुक जायेगी
ना भी रुकी तो जिन्दगी इक जिन्दा लाश हो जायेगी
 हाँ मिल गया कभी खुदा तो उससे पूँछूगा बता
 कि उसने मेरे साथ आखिर क्यों ये अन्याय किया
 तुमको बनाया मेरा सब कुछ और तुम्हें मेरी नही

Monday, April 7, 2008

जिस्मो को मिलना ही नही तो मन मिलाना किस लिए

अब छोडिये भी क्या कहें कि आप क्या करते रहे
 पास रह कर भी हमेशा दूरीयां रखते रहे
 ना कभी हाथों मे हाथ ना चले दो कदम साथ
 जाने खुदा किस बात पे चाह्त का दम भरते रहे
 तुम मेरे करीब आओ ये तो कभी हुआ नही
तुम तो बस जबानी जमाखर्च ही करते रहे
 माना मन मिले बिना व्यर्थ है जिस्मों का मिलना
 पर मन से मन मिले हुए तो इक जमाना हो चला
 और कितनी उम्र तक मन मिलाओगे सनम
 पहले ही ये जिस्म तो बरसों पुराना हो चला
 केवल रूहानी प्यार की जो बात करते हैं सनम
या तो खुद पागल हैं या पागल बनाते है सनम
जिस्म के बिना बता रूह का कहीं वजूद है
रूह भी तब तक रहेगी जब तक जिस्म मौजूद है
 जिस्मो को मिलना ही नही तो मन मिलाना किस लिए
 और मन अगर मिलने नही तो आना जाना किस लिए
 मन का मिलना प्यार मे सीढी से ज्यादा कुछ नहीं
जब छत पे चढना ही नही सीढी लगाना किस लिए

Sunday, April 6, 2008

बिन बात किये ही हर एक बात खत्म हो गयी

बिन बात किये ही हर एक बात खत्म हो गयी
 दिन कभी कम पड़ गया कभी रात खत्म हो गयी
 मै ना बोल पाया कुछ तो काश तुम ही बोलती
 खामोशी के तराजू में क्यों शब्द रही तोलती
तुम भी कुछ ना कह सकी मै भी कुछ ना कह सका
 जाने क्यों दिल ने कह दिया कि बात खत्म हो गयी
 ना तो भीगा तन बदन, ना ही बुझी मन की जलन
दो चार बून्दो से कहाँ बुझती है सदियों की अग्न
तन भी प्यासा मन भी प्यासा दोनो प्यासे रह गये
  जाने क्यों मौसम कह गया बरसात खत्म हो गयी
 ना मिली नजरो से नजरें थामा ना हाथो ने हाथ
ना ठहरे संग पल दो पल ना चले दो कदम साथ
ना गिला ना शिकवा ना ही कसम ना वादा कोई
जाने क्यों वक्त ने कहा, मुलाकात खत्म हो गयी
 सदियों की इन्तजार बाद आयी मिलन की रात
 सपनो मे देखा था जिसे, बाहों मे था वो साक्षात
 दिल मे तुफाँ, होठो पे ताले, क्या कहें क्या ना कहें
हम सोचते ही रह गये और रात खत्म हो गयी
बिन बात किये ही हर एक बात खत्म हो गयी