Monday, April 7, 2008

जिस्मो को मिलना ही नही तो मन मिलाना किस लिए

अब छोडिये भी क्या कहें कि आप क्या करते रहे
 पास रह कर भी हमेशा दूरीयां रखते रहे
 ना कभी हाथों मे हाथ ना चले दो कदम साथ
 जाने खुदा किस बात पे चाह्त का दम भरते रहे
 तुम मेरे करीब आओ ये तो कभी हुआ नही
तुम तो बस जबानी जमाखर्च ही करते रहे
 माना मन मिले बिना व्यर्थ है जिस्मों का मिलना
 पर मन से मन मिले हुए तो इक जमाना हो चला
 और कितनी उम्र तक मन मिलाओगे सनम
 पहले ही ये जिस्म तो बरसों पुराना हो चला
 केवल रूहानी प्यार की जो बात करते हैं सनम
या तो खुद पागल हैं या पागल बनाते है सनम
जिस्म के बिना बता रूह का कहीं वजूद है
रूह भी तब तक रहेगी जब तक जिस्म मौजूद है
 जिस्मो को मिलना ही नही तो मन मिलाना किस लिए
 और मन अगर मिलने नही तो आना जाना किस लिए
 मन का मिलना प्यार मे सीढी से ज्यादा कुछ नहीं
जब छत पे चढना ही नही सीढी लगाना किस लिए

4 comments:

अनूप शुक्ल said...

मन का मिलना प्यार मे सीढी से ज्यादा कुछ नहीं
जब छत पे चढना ही नही सीढी लगाना किस लिए

अच्छा है।

Krishan lal "krishan" said...

anup shukaji ,
shukriya rachna ko pasand karane ke liye.Please continue visiting the blog quite often.

Keerti Vaidya said...

yeh wali kavita bhut he satik likhi hai.....

Krishan lal "krishan" said...

कीर्ति जी
यकीन मानिये you are great- a woman with noble heart and clear understanding. My sincerest thanks for appreciating the ghazal