Friday, March 14, 2008

यार की शर्मिन्दगी मुझ से ना सही जायेगी

मेरी दुआओं का खुदा, इतना तो असर हो जाये
या उसे तकलीफ न हो, या मुझको खबर हो जाये
 ना वो समझा है, ना समझेंगा जरूरत को मेरी मेरे खुदा,
कुछ ऐसा कर, मुझ को ही सब्र हो जाये
 मेरी जरूरत जानकर, अन्जान बन रहा है आज
क्या पता लेकिन उसे, कल मेरी फिक्र हो जाये
 तब यार की शर्मिन्दगी, मुझ से ना सही जायेगी
 मेरी जरूरत यार बिन, तब तक ना पूरी हो जाए
 पार उतरना उसका, मुश्किल भी है, ना मुमकिन भी है
 है यार मेरा वो , जो पानी देख के भी डर जाए
 मेरे खुदा आँखो पे उसके, बान्ध पटटी इस तरह
पानी जमींन सा दिखे, और पार वो उतर जाये
 उसकी 'ना' सुनने की तो आदत रही है बरसों से अ
ब तो ये है फिक्र कि वो 'हां' कहीं ना कर जाये
 मैं जानता हूँ 'वो' मेरा, हमसफर बनेगा जरूर
डर ये है तब तक कहीँ खत्म सफर ना हो जाये

Thursday, March 13, 2008

क्यों हम को भुला बैठे हो सनम

एक उड़ान के भरते ही तुम हमको भुला बैठे हो सनम
 अभी ना जाने तुमको कितनी और उड़ाने भरनी हैं
 जाने किस मन्जिल पहुंचे हो जो बातचीत भी बन्द हुई
 तुमको तो जीवन मे ऐसी कई मन्जिल तय करनी है
 मुझ वक्त के मारे इन्सां से वैसे भी तुम्हें क्या मिलना था
मन गम से बुझा तन उम्र ढला यही चीजे तो मिलनी हैं
 मेरे गम को देख के अपनी आँखे नाहक नम ना कर
 मेरे कारण अपनी खुशियां तुझे काहे को कम करनी है
 पहली बार तुम दूर गयी तकलीफ हुई दिल को ज्यादा
 आखिर तो दूरी सहने की आदत इक दिन हमें पड़नी है
 मै ना तो मन्जिल हूँ तेरी ना ही राहों का साथी हूँ
 फिर मुझ से जुदा होने के लिये काहे को देरी करनी है
 तुम्हे तो उड़ने की खातिर आकाश भी छोटा पड़ता है
मेरे पास तो पाँव रख पाने को जमीँ ही मिलनी है
 मुझ संग रह कर पंख तेरे और भी कम हो जाने थे
और तुझे गगन मे उड़ने की हसरत अभी पूरी करनी है
 औरों से ऊँचा उठने का अहसास सुखद होता है बहुत
 पर मत भूलो कि हर उड़ान इक रोज़ जमीँ पे उतरनी है

Wednesday, March 12, 2008

सब के हाथों मे पत्थर है और निशाने पे मेरा दिल

अपने उसूलो पे जी पाना इतना भी आसान नहीं
सबसे अलग पहचान बनाना इतना भी आसान नहीं
 बनी बनाई राह पे चलना कौन काम है मुश्किल का
अपनी राहें खुद ही बनाना इतना भी आसान नहीं
 जिसके मन सी नहीं कर सका वो ही हमसे दूर हो गया
 सब के बीच तन्हा जी पाना इतना भी आसान नहीं
 आप ही जगना आप ही सोना आप ओढ़ना आप बिछौना
 आप ही पाना आप ही खोना आप ही हंसना आप ही रोना
 हर आँसू को अकेले पीना तुम क्या जानो कितना मुश्किल
 खुद को तसल्ली खुद दे पाना इतना भी आसान नहीं
 पड़ी जरूरत मदद की जब भी खुद को दे आवाज बुलाया
खुद के लिये खुदा बन जाना इतना भी आसान नहीं
 इसके ताने उसके उल्हाने कैसे सहे सब तूँ क्या जाने
 पर लब पे तेरा नाम ना लाना इतना भी आसान नहीं
 गम को छुपा औरो संग हंसना अपने आप मे है मुश्किल
 पर अपने आँसू खुद से छुपाना इतना भी आसान नहीं
 आँख छलक आई मेरी तो इतने क्यों हैरान हो तुम
इन्सां के लिये पत्थर बन जाना इतना भी आसान नहीं
 सब के हाथों मे पत्थर है और निशाने पे मेरा दिल
 ऐसे मे इस दिल को बचाना इतना भी आसान नहीं

Tuesday, March 11, 2008

यार यूँ ही बेवफाई क्यों करेगा यार से

बेवफाई और वफा मजबूरी हैं दोनों प्यार में
फिर काहे जतलाना किसी भी बात का बेकार में
 आपने वादा किया आये नहीं तो क्या हुआ
कुछ दिन तो अच्छे कट गये यूँ तेरे इंतजार मे
 मुझको है अहसास कि मिलने मे वो मज़ा कहाँ
 जो मज़ा आता है अपने यार की इन्तजार मे
 आप फिर वादा करो मै फिर करूँगा इन्तजार ये
 उम्र सारी काट सकता हूँ तेरे इन्तजार में
 जीवन है ऐसे मोड़ पे कोई साथ दे सकता नहीं
 साया भी साथ छोड़ गया क्या गिला फिर यार से
 यूँ भी हर वादा तो किसी का वफा होता नहीं
जो तुम ना पूरे कर सके वादे वो बस दो चार थे
 तूँ है मेरा प्यार बेशक लाख तड़पाये मुझे
 मैं खफा होता नहीं हरगिज भी अपने प्यार से
 क्या पता मजबूरियां कितनी रहीं होंगी तेरी
यार यूँ ही बेवफाई क्यो करेगा यार से

मै खफा होता नहीं हरगिज भी अपने प्यार से

गर बेवफाई और वफा मजबूरी हैं दोनों प्यार में तो काहे जतलाना किसी भी बात का बेकार में आपने वादा किया आये नहीं तो क्या हुआ कुछ दिन तो अच्छे कट गये यूँ तेरे इंतजार मे मुझको है अहसास कि मिलने मे वो मज़ा कहाँ जो मज़ा आता है अपने यार की इन्तजार मे आप फिर वादा करो मै फिर करूँगा इन्तजार ये उम्र सारी काट सकता हूँ तेरे इन्तजार में जीवन है ऐसे मोड़ पे कोई साथ दे सकता नहीं साया भी साथ छोड़ गया क्या गिला फिर यार से यूँ भी हर वादा तो किसी का वफा होता नहीं जो तुम ना पूरे कर सके वादे वो बस दो चार थे तूँ है मेरा प्यार बेशक लाख तड़पाये मुझे मैं खफा होता नहीं हरगिज भी अपने प्यार से क्या पता मजबूरियां कितनी रहीं होंगी तेरी यार यूँ ही बेवफाई क्यो करेगा यार से मै अभी से किस तरह कह दूँ तुम को बेवफा किनारे पे होगा फैसला क्या कहूँ मझधार में

Monday, March 10, 2008

जिस मोड़ पे छोड़ा था साथी तूने हमको

जिस मोड़ पे छोड़ा था साथी तुने हमको
उसी मोड़ पे बैठे हैं तबसे अब तक हम तो
किसी रोज़ ना चाह कर भी पड़ी मेरी जरूरत तो
पाओगे हमे कैसे, ढूंढोगे कहां हम को
 जिस मोड़ पे छोड़ा था कई राहें मुड़ती थी
 कोई इससे जुड़ती थी कोई उससे जुड़ती थी
 चाहता तो मुड़ जाता इस ओर या फिर उस ओर
दरवाजा भले बन्द था कई खिड़कियां खुलती थी
लेकिन ना जाने कयों नहीं ठीक लगा मुड़ना
 किसी रोज़ ना चाह कर भी तुम्हें हम से पड़ा जुड़ना
तो पाओगे हमे कैसे ढूंढोगे कहाँ। हम को
 जिस मोड़ पे छोड़ा था नीरस था हुआ जीवन
 नये सपने बुनने को करने lगा था मन
 मन किया बहुत कोई तब गीत नया बुन लूँ
कोई साज नया छेड़ूं सगीत नया सुन लूँ
 तन्हाई के आलम में ऐसा भी लगा जायज
 कोई प्रीत नयी ढूंढू कोई मीत नया चुन लूँ
 जाने क्या सोचके हम कुछ भी नहीं कर पाये
 शायद ये रही चाहत कि तूँ ही लौट आये
किसी रोज़ ना चाह कर भी पड़ा लौटना जो तुमको
 तो पाओगे हमे कैसे ढूंढोगे कहाँ हमको
 उसी मोड़ पे बैठे हैं तबसे अब तक हम तो
 जिस मोड़ पे छोड़ा साथी तुने हमको