एक उड़ान के भरते ही तुम हमको भुला बैठे हो सनम
अभी ना जाने तुमको कितनी और उड़ाने भरनी हैं
जाने किस मन्जिल पहुंचे हो जो बातचीत भी बन्द हुई
तुमको तो जीवन मे ऐसी कई मन्जिल तय करनी है
मुझ वक्त के मारे इन्सां से वैसे भी तुम्हें क्या मिलना था
मन गम से बुझा तन उम्र ढला यही चीजे तो मिलनी हैं
मेरे गम को देख के अपनी आँखे नाहक नम ना कर
मेरे कारण अपनी खुशियां तुझे काहे को कम करनी है
पहली बार तुम दूर गयी तकलीफ हुई दिल को ज्यादा
आखिर तो दूरी सहने की आदत इक दिन हमें पड़नी है
मै ना तो मन्जिल हूँ तेरी ना ही राहों का साथी हूँ
फिर मुझ से जुदा होने के लिये काहे को देरी करनी है
तुम्हे तो उड़ने की खातिर आकाश भी छोटा पड़ता है
मेरे पास तो पाँव रख पाने को जमीँ ही मिलनी है
मुझ संग रह कर पंख तेरे और भी कम हो जाने थे
और तुझे गगन मे उड़ने की हसरत अभी पूरी करनी है
औरों से ऊँचा उठने का अहसास सुखद होता है बहुत
पर मत भूलो कि हर उड़ान इक रोज़ जमीँ पे उतरनी है
अभी ना जाने तुमको कितनी और उड़ाने भरनी हैं
जाने किस मन्जिल पहुंचे हो जो बातचीत भी बन्द हुई
तुमको तो जीवन मे ऐसी कई मन्जिल तय करनी है
मुझ वक्त के मारे इन्सां से वैसे भी तुम्हें क्या मिलना था
मन गम से बुझा तन उम्र ढला यही चीजे तो मिलनी हैं
मेरे गम को देख के अपनी आँखे नाहक नम ना कर
मेरे कारण अपनी खुशियां तुझे काहे को कम करनी है
पहली बार तुम दूर गयी तकलीफ हुई दिल को ज्यादा
आखिर तो दूरी सहने की आदत इक दिन हमें पड़नी है
मै ना तो मन्जिल हूँ तेरी ना ही राहों का साथी हूँ
फिर मुझ से जुदा होने के लिये काहे को देरी करनी है
तुम्हे तो उड़ने की खातिर आकाश भी छोटा पड़ता है
मेरे पास तो पाँव रख पाने को जमीँ ही मिलनी है
मुझ संग रह कर पंख तेरे और भी कम हो जाने थे
और तुझे गगन मे उड़ने की हसरत अभी पूरी करनी है
औरों से ऊँचा उठने का अहसास सुखद होता है बहुत
पर मत भूलो कि हर उड़ान इक रोज़ जमीँ पे उतरनी है
6 comments:
Bahut hi Badhiya.
Vah!
बहुत उम्दा....बधाई..इस रचना के लिये.
उदन तशतरी जी
आपका आभारी हूँ इस रचना को पढ़ने और सरहाने के लिये । ्पुन: धन्यवाद
indu ji
Shaayad mere is blog par aap pahalii baar aayen hai.
aapka is blog par svaagat hai.
kavitaa ko pasand karane ke liye aapka bahut shukriyaa
ati sunder.......
कीर्ति वैद्य जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया रचना को सुन्दर बता कर प्रोत्साहित करने के लिये
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