Tuesday, October 31, 2017

जो किसी का प्यार न बन सके किस काम का वो शबाब है

ना सिखा मुझे  अच्छा है क्या और क्या यहाँ खराब है
बस अपनी अपनी सोच है और अपना अपना हिसाब है

रेखा के इस पार हैं या रेखा के उस पार हम
वैसी ही बनती सोच है वैसा ही आता ख्वाब है

दुनिया के रंग ढंग देख हुई एक बात तो साफ़ है
जो  खुद करो तो पुण्य है दूजा करे तो पाप है

कल सब को रोकते थे जो उस घर में जाने के लिए
उस घर से आज   निकल रहे  ये वही जनाब है

गेंदा  या चम्पा चमेली  फूल भी कुछ कम  नही
सब के हाथो में हमेशा आता कहाँ  गुलाब है

किस लिए समझाना उसको किस लिए करें मिन्नते
आखिर में हर सवाल का  जब "ना" ही उसका जवाब है

जो अन्धेरा दूर न कर सके वो दिया भला किस काम का
जो  किसी का प्यार न बन सके  किस काम का वो शबाब है


लोग आते रहे लोग जाते रहे कमी तेरी मगर फिर भी खलती रही

कोई मिलता गया कोई बिछुड़ता गया
जिंदगी तन्हा हुई  फिर भी चलती रही
लोग  आते  रहे  लोग जाते रहे
गाड़ी अपनी राह ;लेकिन  चलती रही

कोई तुझ सा मिला कोई  बेहतर मिला
बात फिर भी किसी से बनी ही नहीं
भीड़ अपनों बेगानो की लगी ही रही
कमी तेरी मगर फिर भी खलती रही

लाख की कोशिशे कि  ना फिसले कभी
लड़खड़ा ही गए पर कहीं न कहीं
दिल के अरमान दिल में हुए सब दफ़न
उम्मीदे एक एक कर सब अर्थी  चढ़ी
जिंदगी ठहरी  हर हाल में  जिंदगी
दिल के कोने कोई उम्मीद  पलती  रही

तुझे पाके कुछ हासिल ना अब तक हुआ
आगे भी कुछ नही मिलना , है मुझ को  पता
जिंदगी फिर भी जिद्दी बच्चे  की तरह
अपनी शै पाने को क्यों  मचलती रही