Friday, October 24, 2008

दिलो मे गांठ रखके रिश्ते निभाये नहीं जाते

बलबूते ऒरों के अन्धेरे मिटाये नहीं जाते
अन्धेरॊं मे ज्यादा दूर तक साये नहीं जाते
 बिना रहबर तू कॆसे राह ढूंढेगा ए मुसाफिर
 पथरीली राह कदमो के निशां पाये नही जाते
 नक्शे देख पढ्कर ही तू अपनी ढून्ढ ले मन्जिल
 ले चलें थामकर उंगली वो अब पाये नहीं जाते
 नही जज्बात दिल मे तो यूंही मिलने से क्या हासिल
 दिलो मे गान्ठ रखके रिश्ते निभाये नही जाते
 ये सपने हॆ तो फिर रातो की खातिर ही बचा रखो
 उजाले मे खुली आंखों ये दिखलाये नहीं जाते
 अन्धेरो मे जरूरत रोशनी की पड ही जाती हॆ
 यूं जुगनु देखकर चिराग बुझाये नही जाते
 चॊराहो मे चिरागों से करेगे रोशनी वो क्या
 दिये इक दो भी जिनसे घर मे जलाये नही जाते
 चॊराहों मे इंतजाम-ए-रोशनी कीजे मगर समझो
 घरो में जलते दीये भी तो बुझाये नहीं जाते

Monday, October 20, 2008

इक कदम गलत पडा क्या जिन्दगी की राह में

जिन्दगी के अर्थ हॆं जब से समझ आने लगे
 जिन्दगी तेरे नाम से हम तो घबराने लगे
 हम से हुआ गुनाह तो बात सबकी बन गयी
 कल के गुनाह्गार मुनसिफ बन के इतराने लगे
 इक कदम गलत पडा क्या जिन्दगी की राह मे
 खुद लडखडाते लोग हमें संभलना सिखलाने लगे
 इक हवा के झॊके ने किया तिनका तिनका आशियां
जिसको बनाने मे थे हमको कितने जमाने लगे
 क्या गिला अब कीजीये ऒर क्या शिकायत हम करें
 अप को जब हम से ज्यादा गॆर हॆं भाने लगे
 ये भी कोई यार का यार से मिलना हुआ
यार जब आते ही रट जाने की लगाने लगे
आप तो सुनते ही मेरी बात मुस्काने लगॆ
जाने किस मुश्किल से मुश्किल हम थे बतलाने लगे
 दोस्तो ने दोस्ती मे गम दिये तो इस कदर
 जितने दुश्मन थे हमें अपने नजर आने लगे