Thursday, April 3, 2008

सूखी घास मे डाल दी है तुमने जलती चिन्गारी

 सूखी घास मे डाल दी ही तुमने जलती चिन्गारी
देखना अब ये गल्ती तुम पे पडेगी कितनी भारी
 सोचा तुमने एक छोर को आग लगा मज़ा लोगे
और जरूरत पड़ी तो अपना छोर बचा तुम लोगे
 पर आग लगी इस छोर तो अंतिम छोर तलक जायेगी
 भडक गयी इक बार तो फिर नही रोके रुक पायेगी
 शान्त तभी होगी ज्वाला जब जलेगी ढेरी सारी
 देखना------
 सीमाओ में बान्धे खडा है बान्ध ये पानी कब से
 एक बून्द भी इधर से उधर हुआ नही ये तब से
तुम क्यों फिर बारूद लगा इस बान्ध को तोड रहे हो
पानी का रुख अपनी ओर ऐसे क्यों मोड़ रहे हो
ये नहर नही ना नदिया है जो सीमाये पह्चाने
टूटा बान्ध क्या क्या ले डूबे ये तू अभी क्या जाने \
अपने संग ये ले डूबेगा तेरी बस्ती सारी
 देखना अब्…॥
 धीरे धीरे हम तो प्रीत को तोड़ चुके थे सब से
प्रियतम से मिलने की आस को छोड चुके थे कब से
हम ने तो इस तन्हाई का गिला किया नही रब से
 फिर कयों रब ने तुझे मिलाया छुड़ा के रिश्ता सब से
तुम ने जानू कह कर मेरी जान ये क्या कर डाला
 बुझे हुये इस मन मे जगा दी फिर से प्रेम की ज्वाला
 जाने कौन जादू की झप्पी तुमने हमको मारी
देखना अब ये गल्ती तुम पे पडेगी कितनी भारी
Posted by Krishan lal "krishan" at 18:20 0 comments

Wednesday, April 2, 2008

जब घर मे तेरी चूड़ी का टूटा हुआ टुकड़ा मिला

मैने तुम से कब कहा कि तुम हो सनम बेवफा
क्यों सुना रहे हो फिर मजबूरियों की दास्ताँ
 पर ये भी कोई यार का यार से मिलना हुआ
 एक इक कदम आगे बढ़ा तो दूजा दो पीछे हुआ
 काफी था राहों में मिलना घर बुला के क्या हुआ
घर में भी जब तू मिला तो फासले रख के मिला
 जिस्मो का स्पर्श तो मानो अनहोनी बात थी
 हाथों को हाथ छू गया तो भी तुझे हुआ गिला
 दूरीयां कायम रही और रात सारी कट गई
किस कदर तहजीब से इक यार यार से मिला
 पर कौन मानेगा मेरी कि फासले कायम रहे
 जो घर में तेरी चूडी का टूटा हुआ टुकडा मिला
 पास रह के इतनी दूरी और अब मुमकिन नहीं
 इतनी दूरी रखनी है तो फिर तूँ दूर ही भला
 बातों से बात बनने वाली है नही मेरे हजूर
प्यार है तो प्यार कर या खत्म कर ये सिलसिला

Monday, March 31, 2008

स्वर्ग की ये अप्सरा धरती पे कैसे आ गयी

चान्द बोला मुझसा सुन्दर है कोई दूजा बता मुझसे मिलती है धरा को चान्दनी जैसी छटा तारे बोले हमसा सुन्दर है कहाँ कोई दूसरा तारों भरे आकाश से सुन्दर नजारा और क्या फूल बोले हम हैं सुन्दर हम से महका ये जहाँ बोला गुलाब मुझ सा रंग रूप मिलता है कहाँ मन मेरा तब कल्पना की वो उडान भर गया चान्द से भी सुन्दर चेहरे का तसुव्वर कर गया गुलाब से भी शोख रंग रूप उसका सोच डाला आँखे गहरी झील सी जो उतरा बस उतर गया नयना कजरारे मिले तो इतने कजरारे मिले नयनों में काजल लगा तो और काला पड गया जुल्फें इतनी रेशमी ढूंढी कि सर पे जब कभी डाला दुपटटा बाद मे पहले नीचे सरक गया माथे पे बिन्दी की जगह इक उगता सूरज धर दिया होठों को वो मिठास दी जिसने चखा वो तर गया देखते ही देखते लाजवाब सूरत बन गयी चेहरे पे नूर इतना कि सूरज भी फीका पड गया बस अब धडकने के लिये इक दिल की मुझे तलाश थी उस की जगह पे मैने अपने दिल का टुकडा धर दिया इस इरादे से कि हर शै से वो सुन्दर बने सारे जहाँ की सुन्दरता इक चेहरे में ही भर गया मैं तो अपनी सोच में कुछ और था बना रहा मुझ को क्या खबर थी तेरा अक्स है उभर गया देख के सूरत तेरी चान्द भी शरमा गया और गुलाब के भी माथे पर पसीना आ गया रंग रूप देख तेरा मेनका घबरा गयी स्वर्ग की ये अप्सरा धरती पे कैसे आ गई अच्छे बुरे नसीब का पैमाना क्या है तय हुआ ये बात हर इक शख्स को तुझे देख समझ आ गई बदनसीब वो हुआ तू जिससे दूर हो गई वो खुशनसीब हो गया तूँ जिसके पास आ गई